Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 353
________________ ܐ श्रीकृष्ण-कथा- कुछ प्रेरक प्रसंग ३२५ - तो मै तुझे ही खा जाऊँगा । -शक्ति हो तो युद्ध कर । 1 पिशाच ने चुनौती स्वीकार कर ली । दोनो युद्ध करने लगे । ज्योज्यो दारुक का क्रोध वढता गया त्यो त्यो पिशाच अधिकाधिक बल - शाली होता गया । दारुक थक गया, परन्तु पिशाच पर विजय न प्राप्त कर सका । उसे काफी चोटे भी आई । प्रथम प्रहर व्यतीत हो गया और पिशाच अन्तर्धान । द्वितीय प्रहर प्रारम्भ होते ही सात्यकि उठकर पहरा देने लगा और दारुक सो गया । वह इतना निढाल हो गया था कि पिशाच के बारे मे सात्यकि को कुछ बता भी न सका । सात्यकि को पहरा देते कुछ ही समय गुजरा कि पिशाच फिर आ धमका । सात्यकि भी अपने साथियो की प्राण-रक्षा के लिए जी-जान से लड़ने लगा, किन्तु पिशाच परास्त न हुआ । 4 तीसरे पहर वलदेव भी पिशाच से लडते रहे पर स्थिति वही रही। वे भी थककर निढाल हो गए । चौथे पहर श्रीकृष्ण पहरा देने लगे । पिशाच फिर आया । शातभाव से कृष्ण ने पूछा -भाई । तुम कौन हो और यहाँ क्यो आए हो ? - मैं पिशाच हूँ | कई दिन से भूखा हूँ । क्षुधा की ज्वाला से मैं क्रोधान्ध हो रहा हूँ । आज मुझे भाग्य से वढिया भोजन मिला है । - पिशाच ने श्रीकृष्ण के तीनो सोते हुए साथियो की ओर संकेत किया । - कृष्ण उसकी इच्छा समझ गए । उन्होने दृढ स्वर मे प्रतिवाद किया । किन्तु मानव और पिशाच के वलावल को जानकर शान्त भाव से खडे रहे । उनकी शांति और दृढता को देखकर पिशाच को क्रोध आ गया । वह युद्ध हेतु आगे वढा । कृष्ण ने कहा - पिशाच । तुम बहुत वलशाली हो, गजव के योद्धा हो । इन मधुर वचनो ने पिशाच की क्रोधाग्नि में घी का काम किया । वह और भी कुपित हो गया । ज्यो-ज्यो उसका क्रोध बढा त्यो -त्यों

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