Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३३
के बीचोबीच जा पहुँचे । प्रथम ही उन्होने सम्पूर्ण शक्ति से पाचजन्य शख को फूंका। शख की कठोर ध्वनि दशो दिगाओं में गूंज गई । उस ध्वनि के कारण ही पद्मनाभ एक-तिहाई कटक हत हो गया ।
अभी शख-ध्वनि शान्त भी नही हो पाई थी कि कृष्ण ने अपना शाङ्ग धनुष हाथ मे लेकर तीव्र धनुष्टकार किया और शत्रुराजा की दूसरी एक-तिहाई सेना भग हो गई ।
पद्मनाभ भयभीत हो गया । 'जिस महायोद्धा की मात्र शखध्वनि और घनुष्टकार से दो-तिहाई सेना नष्ट हो गई उसका सामना कैसे कर सकूंगा' - यह सोचकर पद्मनाभ अपने बचे-खुचे एक-तिहाई दल को लेकर नगरी में जा छिपा और द्वार बन्द करवा लिए ।
राजा पद्मनाभ की इस कायरता से कृष्ण को बड़ा क्रोध आया । उन्होंने उसका पीछा किया और अमरकका के द्वार तक जा पहुँचे । नगर-द्वार को बन्द देखकर वे रथ से उतर पडे । समुद्घात से उन्होने एक विशालकाय नरसिह का रूप बनाया और घोर गर्जना करके पृथ्वी पर पाद - प्रहार करने लगे । उनके चरणाघात से पृथ्वी कॉप गई और नगर की अट्टालिकाएँ तथा किले की दीवारे गिरने लगी । नगरनिवासी प्राणो की रक्षा के लिए इधर-उधर भागने लगे। सभी के मुख से 'त्राहिमाम्-त्राहिमाम्' निकल रहा था ।
भयभीत राजा पद्मनाभ द्रौपदी के चरणो मे जा गिरा । बोला- क्षमा करो, देवि । क्षमा करो। यमराज के समान भयकर श्रीकृष्ण से मेरी प्राण-रक्षा करो ।
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- क्यो ? क्या काम - पिपासा शात हो गई ? – द्रौपदी ने उलाहना दिया ।
- इस समय व्यग मत करो। मेरे प्राण सकट में है 1.
- अब तो मालूम हो गया कि मैं किस महायोद्धा की बहन हूँ । मेरे अपहरण का परिणाम क्या है ?
- परिणाम ! परिणाम तो मैं क्या सारा नगर ही भोग रहा है । : तब तक नगर निवासियो की भयग्रस्त चीख-पुकार और 'रक्षा
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