Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 343
________________ o कुछ प्रेरक प्रसंग " [१] वीरक- . एक बार भगवान अरिष्टनेमि वर्षावास हेतु द्वारका मे मनवसृत हुए । कृष्ण ने सहज ही जिज्ञासा की -भगवन् । सन्त तो स्वेच्छाविहारी होते हैं, फिर भी वर्षा ऋतु मे चार मास तक गमन नही करते-क्या कारण है ? * प्रभु ने बताया -वऋितु मे श्रम-स्थावर जीवो की अधिक उत्पत्ति हो जाती है। जीवो की विराधना न हो इस कारण अहिसा महाव्रत धारी श्रमण गमनागमन नहीं करते । एक ही स्थान पर रहकर ज्ञोन-सयम की आरावना करते हैं। -तव तो मै भी वर्षा ऋतु मे दिग्विजय आदि के लिए प्रस्थान नहीं करूंगा, न ही सभा आदि का आयोजन कगा। कृष्ण ने निर्णय किया । ___इस निर्णय के अनुसार सभा आदि में कृष्ण का आना-जाना स्थगित हो गया ! वे राजमहल से वाहर न निकलते। सेवको को आना दे दी कि 'किमी को भी राजमहल मे न आने दिया जाय।' इस आज्ञा का सवसे अधिक प्रभाव हुआ वीरक पर। वह कृष्ण के प्रति विशेष अनुरागी था। उनके दर्शन किये बिना भोजन न करता । कृष्ण वाहर निकले नही तो उसे दगंन भी न हुए । वह राजमहल के बाहर बैठा रहता किन्तु दर्शन न होने से भोजन न करता। ३१५

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