Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
३१६
जैन कथामाला भाग ३३ वह अत्यन्त कृश हो गया। वर्षाकाल बीत जाने पर कृष्ण वाहर निकले तो उससे पूछा
-अरे वीरक | तुम इतने निर्बल कैसे हो गए ?
वीरक तो कुछ न बोला किन्तु द्वारपालो ने हकीकत कह सुनाई। कृषण को बडा दुख हुआ और वीरक पर दया भी आई। उन्होने उसे निराबाध प्रवेश की आज्ञा दे दी। - इसके बाद कृष्ण अरिष्टनेमि को वदन करने गए तो यतिधर्म सुनकर वोले
-मैं स्वय तो यतिधर्म का पालन करने मे अपने को असमर्थ पाता हूँ, किन्तु यदि कोई सयम लेना चाहेगा तो उसका अनुमोदन करूँगा और अपनी ओर से प्रेरणा भी दूंगा। ___ यह अभिग्रह लेकर कृष्ण घर लौट आए। उनकी पुत्रियाँ नमस्कार करने आई । उनसे पूछा
-स्वामिनी बनोगी या दासी ? दासी कौन बनना चाहे ? सवने स्वामिनी बनने की इच्छा प्रकट की । कृष्ण ने बताया
-स्वामिनी वनना है तो सयम ग्रहण करो ।
अत उनकी प्रेरणा से सभी ने अरिष्टनेमि के पास जाकर प्रव्रज्या ग्रहण कर ली।
यह देखकर एक रानी ने अपनी पुत्री केतुमजरी को सिखाया कि जब पिता तुमसे पूछे तो दासी बनने की इच्छा प्रकट करना। माता के बहकावे मे आकर पुत्री ने कहा
-- पिताजी । मैं तो दासी बनूंगी।
इस विपरीत इच्छा को सुनकर कृष्ण विचारने लगे कि इस पुत्री को शिक्षा देनी चाहिए। यदि इसका पाणिग्रहण किसी राजा के साथ कर दिया गया तो अन्य सन्ताने भी इसका अनुसरण करेगी और भोग का फिसलन भरा मार्ग चालू हो जायेगा । इसलिए ऐसा उपाय करूं कि लोग भोग के कीचड़ मे न फंसे ।