Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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आई - 'देवकी तेरे आठ पुत्र होगे और सभी जीवित रहेगे ।' छह 'पुलो पर तो कम की कृपा हो गई । सातवाँ पुत्र कृष्ण जीवित है । किन्तु इन छट्टो मुनियो पर मेरा वात्सल्य क्यों उमड़ रहा है ? इनसे मेरा क्या सम्बन्ध है ? " आदि प्रश्न उसके मानस मे चक्कर काटने लगे। इन प्रश्नो का उत्तर कौन दे ? अचानक व्यान आया - जब अर्हत अरिष्टनेमि ही नगर के बाहर विराजमान है तो उन्ही से क्यो न पूछूं
?
यह विचार आते हो देवकी अरिष्टनेमि के समवसरण मे जा पहुँची । नमन - वन्दन करके एक ओर बैठी । उसके मानस मे प्रश्न चल ही रहे थे । अपनी शकाओं का समाधान करना ही चाहती थी कि अन्तर्यामी भगवान ने कहा
रहे तुम्हारे हृदय में मुनियो के प्रति विविध प्रकार के भाव उठ
-हाँ, प्रभु ! और मैं यही पूछने आई हूँ कि मुनि अतिमुक्तक की भविष्यवाणी मिथ्या कैसे हो गई । - देवकी ने कहा ।
प्रभु ने वताया
-- नही, मुनि के वचन मिथ्या नही हुए । अब तक तुम्हारे सात पुत्र जीवित हैं ।
भगवान के वचन सुनकर देवकी उनकी ओर देखती ही रही । तब उन्होंने रहस्य उद्घाटित करते हुए कहा
भहिलपुर मे नाग गाथापति रहता है, उसकी स्त्री का नाम मुलसा' है । सुलसा की वाल्यावस्था मे ही किसी निमित्तज्ञ ने बताया कि 'यह कन्या मृत पुत्रो को जन्म देने वाली होगी ।' सुलसा हरिणगमेपी देव की पूजा-अर्चना करने लगी। उसकी भक्ति से देव प्रसन्न हुआ । अत वह मुलमा और तुमको एक ही समय मे ऋतुमती करने लगा। जब तुम जीवित पुत्रो को जन्म देती तो उसी समय मुलसा
१ हरिवण पुराण मे पिता का नाम बताया गया हैं ।
यही नाम उत्तरपुराण मे भी दिए गए है । ( ७१-२१५)
सुदृष्टि और माता का नाम अलका (देखिए - हरिवंश पुराण ५६।११५ )