Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar

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Page 335
________________ श्रीकृष्ण-कथा--जसुकुमाल राजा ने नयम ले लिया। यह देखकर भानुदत्त और यमुनादेत्ता भी प्रवृजित हो गः । माता-पिता के दीक्षित हो जाने पर मातो भाइयो ने व्यसनो ने फैन कर पिता का नारा धन नष्ट कर डाला । राजा ने उन कुकर्मियो को नगर से बाहर निकाल दिया । सातो भाई उज्जयिनी पहुंचे। वहाँ नबने छोटे भाई सूलेन को तो उन्होंने श्मशान में छाडा और वाकी छहो नगर में चोरी करने चले गए । शान मे एक विचित्र घटना हुई। उन नगर में राजा वृपमध्वज राज्य करता था । उसके दृटप्रहार्य नाम का एक मलमट योद्धा था । उसकी वपुश्री नाम की स्त्री के वज्रमुष्टि नाम का पुत्र या । उमी नगर क नेठ विमलबन्द्र की स्त्री विमला से उत्पन्न पुत्री मगी के नाथ वज्रमुष्टि का विवाह हुआ था । वनतऋतु मे वसतक्रीडा हेतु मगी भी अपनी सानू वपुश्री के साथ गई। वपुथी से घडे मे पुष्पहार के माथ काला सर्प भी रख दिया था । ज्योही मगी ने घडे मे हाय डाला त्योही उसको सर्प ने टम लिया और वह विपप्रभाव से मूच्छित हो गई। वपुश्री उसे घास में ढक कर चली आई। वज्रमुष्टि ने अपनी माँ ने मगी के बारे में पूछा तो उसने झूठमूठ की वाते दना दी । वज्रमष्टि उसके शोक मे व्याकुल होकर नगी तलवार हाथ में लिए मगी को ढंढने निकला। उसे श्मशान में ही वरधर्म मुनि के दर्शन हुए। उसने उन्हें नमन करके प्रतिज्ञा की 'हे स्वामी यदि मुझे मेरी स्त्री मिल जाय तो-हजार दल वाले कमल से आपकी पूजा करें।' थोडी दूर जाने पर ही पलाल (घास) से ढकी उसे अपनी स्त्री दिखाई दे गई। उसने उसे लाकर मुनि के चरणो मे डाल दिया । मुनिश्री के प्रभाव मगी निर्विप हो गई। प्रसन्न होकर बनमुष्टि हजार दल वाले कमल की खोज मे चल दिया। यह मव कौतुक श्मशान में छिपा सूरसेन देख रहा था। उसने मगी की परीक्षा लेने के उद्देश्य से उसे रिझाया, मीठी-मीठी वाते बनाई और खुगामद की। मगी उस पर अनुरक्त होकर कहने लगी-'मुझे अपने साय कही ले लो।' तब तक वज्रमुष्टि जाता दिखाई पड गया । सूरसेन एक वृक्ष की ओट मे जा छिपा। वज्रमुष्टि ने नगी तलवार मगी

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