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________________ २६० जैन कथामाला : भाग ३३ - यह द्वारका नगरी कहाँ है ? - समुद्र के किनारे, अति समृद्ध | स्वर्ग की अलकापुरी के समान । -कौन है, वहाँ का शासक ? - यादव कुलभूषण वसुदेव - पुत्र श्रीकृष्ण । कृष्ण का नाम सुनते ही जीवयगा वहाँ से उठकर सीधी पिता के पास गई और रोने लगी । पुत्री से रोने का कारण पूछा तो उसने वताया - मेरे पति का हत्यारा कृष्ण अभी तक जीवित है और द्वारका नगरी पर राज्य कर रहा है । मुझे आज्ञा दीजिए कि मैं अग्नि मे जलकर अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर सकूँ । कृष्ण के जीवित रहने का समाचार जानकर जरासंध भी कुपित हो गया । धैर्य बँधाते हुए पुत्री से बोला - वत्से । रो मत । मैं कृष्ण को मारकर यादवो का समूलोच्छेद कर दूंगा । यादव स्त्रियाँ अपने ही आँसुओ से भीग जायेगी । पुत्री को आश्वासन देकर जरासध युद्ध की तैयारियो मे जुट गया । उसकी सहायता के लिए चेदि नरेश शिशुपाल दुर्योधन आदि समस्त कौरव, महापराक्रमी राजा हिरण्यनाभ आदि आगए। प्रतिवासुदेव जरासघ ने चतुरगिणी सेना सजाकर प्रस्थान कर दिया । प्रस्थान के समय अनेक अपशकुन हुए किन्तु उसने कोई चिन्ता नही की और द्वारका की ओर बढता रहा । x X X जरासंध के आगमन का समाचार कौतुकी नारद तथा अन्य चरों ने कृष्ण को पहले ही दे दिया । युद्ध को अवश्यम्भावी जानकर यादव भी तैयारियाँ करने लगे । समस्त यादव - परिवार और सेना के साथ पाँचो पाडव भी उनसे आ मिले । श्रीकृष्ण द्वारका से प्रस्थित हुए और पैतालीस योजन दूर सेनपल्ली में शिविर लगा दिया । उस समय कुछ विद्याधर आये और समुद्रविजय से प्रार्थना को
SR No.010306
Book TitleJain Shrikrushna Katha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1978
Total Pages373
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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