Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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थामाला :म
-कितना समय चाहिए, तुम्हे ?
--एक मास' का । यदि एक मास के अन्दर मेरे स्वजन मुझे यहाँ से ले जायेगे तो ठीक अन्यथा ।
मुस्कराकर पद्मनाभ ने कहा
—तुम्हरी अवधि मुझे स्वीकार है । पर कितनी भोली हो तुम ? अव भी तुम्हे अपने स्वजनो के आने की आगा शेप है।
पद्मनाभ तो द्रौपदी की इच्छा स्वीकार करके चल गया और द्रौपदी ने अभिग्रह ले लिया-'पति विना मैं एक मास तक भोजन नही करूंगी।' और वह अपनी आत्मा को इस तप से भावित करके रहने लगी।
-त्रिषष्टि० ८।१०
१ (क) हरिवश पुराण मे भी एक ही मास की अवधि का उल्लेख -
मासम्याभ्यन्तरे भूप यदीह स्वजना मम । । नागच्छन्ति तदा त्व मे कुरुष्व यदभीप्सितम् ।।
(हरिवशपुराण ५४॥३६) (ख) किंतु ज्ञाताधर्मकथा मे छह माह की अवधि का उल्लेख है :
"तए ण सा दोवईदेवी पउमणाम एव वयासी, एव खलु देवाणु- प्पिया ! जबुद्दींवेदीवे' भारहेवासे वारवइये नयरीए कण्हेणाम
वासुदेवे ममप्पिय माउए परिवसइ, त जइ ण से छह मासाण मम कूब नो हव्वमागच्छइ.।" ' (ज्ञातासूत्र, अ० १६, सूत्र २०६) ज्ञाताधर्म० मे पप्ठ-षष्ठ आयविल तप का वर्णन है---. . "तए ण सा दोवईदेवी न्ठं छठेण अणिक्खित्तेण आयबिल' परिग्गहिएण तवोकम्मेण अप्पाण भावेमाणी विहरइ।" ।
(ज्ञाताधर्मकथा, अ० ६, सूत्र २११)