Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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धातकीखण्ड-गमन
प्रात काल युधिष्ठिर को पार्श्व में सोई हुई द्रौपदी न दिखाई दी तो वे चितित हुए । सारा महल छान डाला गया किन्तु द्रौपदी कही न मिली। ___पाडवो ने द्रौपदी की वहुत खोज कराई परन्तु सव प्रयास व्यर्थ हुए । अन्त मे सब ओर से निराश होकर उन्होने अपनी माता कुन्ती को बुलाया और कहा
तुम श्रीकृष्ण के पास जाओ और उनसे द्रौपदी की खोज करने की विनती करो। ___ पुत्रो की इच्छा जानकर कुन्ती द्वारका नगरी पहुँची। वासुदेव श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ के चरण-स्पर्ग करके स्वागत किया और आने का कारण पूछा । कुन्ती ने बताया
-पुत्र युधिष्ठिर द्रौपदी के साथ सुखपूर्वक सो रहा था। जागने पर वह दिखाई न दी । न जाने कौन उसका हरण कर ले गया ? हमने बहुत प्रयास किया किन्तु वह न मिली। वासुदेव ! अब तुम्ही उसकी खोज करो तो वह मिले अन्यथा मेरा अन्तर्मन कहता है कि उसका मिलना असभव है। - वासुदेव ने द्रौपदी का हरण सुना तो उनके माथे पर बल पड़ गए। वोले-'कौन ऐसा दुष्ट है जो अकारण ही काल का ग्रास बनना चाहता है ।' कुन्ती को आश्वासन देते हुए कहा-'आप चिन्ता न कीजिए । मैं उसे अवश्य ही खोज निकालूंगा।' यह कह कर उन्होने कुन्ती को विदा कर दिया।
श्रीकृष्ण ने अपने अनुचर सभी दिशाओ में भेज दिए किन्तु द्रौपदी “का पता कही न लगा।