Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला : भाग ३३ और अनुचरो के अतिरिक्त इम्य, श्रेण्ठि, मार्थपति आदि हजारो पुरुष अंजलि बाँधकर उनकी सेवा और आनापालन में खड़े रहते थे।
एक बार मोलह हजार राजाओ ने अपनी दो-दो पुत्रियाँ वासुदेव कृष्ण को दी। उनमे से सोलह हजार कन्याएँ तो श्रीकृष्ण ने स्वय परणी, आठ हजार कन्याओ का विवाह बलराम से कर दिया और शेप आठ हजार का कुमारो के साथ लग्न कर दिया गया।
श्रीकृष्ण, बलगम और सभी यादवकुमार मुखपूर्वक समय विताने लगे।
-त्रिषष्टि० ८/७-८ --उत्तरपुराण ७१/५२-१२८
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विशेष १ वैदिक माहित्य म जरानघ युद्ध न होकर जरासघ वध का वर्णन है। उन परम्परा के प्रमुख अन्य महाभारत में यह वर्णन निम्न प्रकार है----
कमवध होते ही जरामध की पुत्री जीवयशा विधवा हो गई और जरासघ इसी कारण कृष्ण ने शत्रुता मानने लगा। उसने ६६ वार घुमा कर गदा फेकी जो मयरा के पास जाकर गिरी किन्तु कृष्ण की कोई हानि न हई। उसने मत्रह वार मथरा पर आक्रमण भी किया किन्तु नफल न हो सका। मथुरा की प्रजा भी बहुत पीडित हो गई तव अठारहवी बार के आक्रमण के अवसर पर श्रीकृष्ण मथुरा मे भागे और समुद्र तट के पास जाकर द्वारका बमाई।
किन्तु कृष्ण ने समझ लिया कि जरासघ को युद्ध में मारना बहुत कठिन है। अन भीममेन और अर्जुन के माय वे ब्राह्मणो के वेश मे जरामय की सभा में पहुँचे । जरासघ ने उठकर उचित स्वागत किया। कुशल आदि पूछी। कृष्ण ने कह दिया कि 'अभी इनका मौन है । अर्द्धरात्रि को बाते हो सकेंगी।' तीनो को यज्ञशाला मे ठहरा दिया गया।