Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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“इस तर्क का उत्तर अरिष्टनेमि के पास नही था। वे चुप रह गए। कृष्ण ने उनके मौन को स्वीकृति समझा और समुद्रविजय आदि से कह दिया। उनके योग्य कन्या भी खोज ली गई उग्रसेन की , पुत्री राजीमती।
समुद्रविजय ने नैमित्तक कौष्ट्र कि से विवाह के लिये शुभ लग्न पूछा तो उसने कहा__-राजन् । वर्षा ऋतु मे कोई भी सासारिक शुभ कार्य नही किया जाता तो विवाह । __-विवाह का मुहूर्त तो शीघ्र ही निकालिए। देर करना उचित नहीं है । बडी कठिनाई से कृष्ण उसे राजी कर सका है। -समुद्रविजय ने आतुरता दिखाई। __कोष्ट्र कि ने स्थिति की गम्भीरता समझी और श्रावण शुक्ला ६ का मुहूर्त निकाल दिया।
वारात सज-धज कर चल दी। राजीमती भी अरिष्टनेमि जैसे पति की प्राप्ति की आगा मे मगन थी। ___ ज्यो ही अरिष्टनेमि का रथ नगरी के समीप आया तो उन्हे पशुओ की पुकार सुनाई दी। उन्होने सारथी से पूछा
यह पुकार कैसी?
-आपकी वारात मे आये लोगो के भोजन के लिये इन पशुओ को पकडा गया है । -सारथी ने बताया। ___ अरिष्टनेमि का हृदय दया से भर गया । उनकी आज्ञा से सारथी ने रथ पशुओ के वाडे के समीप जा खडा किया। उन्होने अपने हाथ
१ हिरनो (पशुओ) को श्रीकृष्ण ने एकत्रित करवाया था। वह कार्य उन्होने __ अरिष्टनेमि को ससार मे विरक्त करने के लिए किया था।
(उत्तर पुराण ७१/१५२)