Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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--अभी वाण आराधना मे ही बैठा है । उसे तुम्हारे चले आने का भान भी नहीं है । तुरन्त-जाओ और अपने कथन मे इतना और बढ़ा दो-'स्त्री के कार्य के अतिरिक्त ।'
शकर देव पुन. वाण के सामने प्रगट हुआ और वोला
-खेचरपति । स्त्री सम्बन्धी युद्ध के अतिरिक्त सभी युद्धो में तुम अजेय रहोगे।
वाण ने समझा कि उसे पूरा वरदान अब मिला है। उसकी साधना अव सफल हुई है। वह प्रसन्न हो गया।
उषा अनिद्य सुन्दरी थी। अनेक विद्याधरो ने उसकी याचना की किन्तु खेचरपति वाण ने कोई स्वीकार नही की । वह किसी विशिष्ट पुरुप की आशा लगाये बैठा था और उधर पुत्री उषा अनिरुद्ध के नाम की माला जप रही थी। अन्यो की याचना स्वीकार कैसे होती ?
एक रात्रि उपा ने अपनी प्रिय विद्याधरी से अपनी हृदय व्यथा कही और अनिरुद्ध को लाने का आग्रह किया। चित्रलेखा ने उसकी इच्छा पूरी की। सोते हुए अनिरुद्ध को उठा लाई। किसी को कानो कान खबर न लगी। । उसी रात्रि उषा-अनिरुद्ध का गाधर्व विवाह होगया। उषा तो अनुरक्त थी ही, उसकी सुन्दरता पर अनिरुद्ध भी मोहित हो गया। जव उसे लेकर चलने लगा तो उद्घोषणा की
-विद्याधर वाण और उसके सुभट कान खोलकर सुन ले मैं वासुदेव श्रीकृष्ण का पौत्र और प्रद्युम्न का पुत्र अनिरुद्ध उपा की इच्छा से उसका हरण कर रहा हूँ, साहस हो तो मुझे रोके । ।।।
वाण क्रोध मे भर गया। उसकी सेना ने अनिरुद्ध को चारो ओर से घेर लिया । तव उपा ने उसे पाठमिद्ध विद्याएँ दी। उन-विद्याओं
१ पाठमिद्ध विद्याएँ वे होती हैं जिन्हे सिद्ध नही करना पडता केवल पढते
ही काम करने लगती हैं।