Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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--हाँ भैया | -सहज उत्तर मिला। -और अन्य दिव्यशस्त्र भी ? -
अरिष्टनेमि ने स्वीकृतिसूचक सिर हिला दिया । उनकी स्वीकृति से कृष्ण चकित रह गए। वे बोले___-इन दिव्यास्त्री को प्रयोग करने की शक्ति मेरे अतिरिक्त और किसी मे नही है। किन्तु तुम्हारे वल को जानकर मुझे अति प्रसन्नता हुई । व्यायामशाला मे चलकर अपना भुजवल बताओ तथा मुझे और भी प्रसन्न करो।
कृष्ण की चुनौती सुनकर अरिष्टनेमि ने सोचा-'व्यायामशाला मे यदि मैं इन्हे वक्षस्थल, भुजाओ, पॉवो से दवाऊँगा.तो इनकी न जाने क्या दशा होगी। साथ ही वडे भाई की अविनय भी-। इसलिए ऐसा करूँ कि इनकी इच्छा भी पूरी हो जाय और इन्हे कष्ट भी न. हो तथा मैं भी अविनय का भोगी न बनूँ ।" यह सोचकर उन्होंने कहा' -आप मेरा वल ही तो देखना चाहते हैं, इसके लिए व्यायामशाला मे जाने की आवश्यकता ? ___-फिर ?
-आप अपनी भुजा फैला दीजिए । मैं उसे झुकाकर अपनी शक्ति का परिचय दे दूंगा।
यह बात कृष्ण को पसन्द आई । उन्होने अपनी दायी भुजा पूरी शक्ति से तान दी । अरिष्टनेमि ने उसे कमलनाल की भॉति झुका दिया। अब कृष्ण ने उनसे भुजा फैलाने का आग्रह किया। पहले तो अरिष्टनेमि न न करते रहे किन्तु विशेष आग्रह पर वायी भुजा लम्बी कर दी । कृष्ण उसे अपनी सम्पूर्ण शक्ति लगाकर भी न झुका सके और बन्दर की तरह झूलने लगे। उन्होने समझ लिया कि अरिष्टनेमि के बल की कोई सीमा नही है । भुजा छोडकर उन्होने आलिंगन किया और बोले..-जिस तरह मेरे बल के कारण बड़े भैया बलराम ससार को तृण