Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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नारद की करतूत
द्वारका के एक सद्गृहस्थ धनसेन ने राजा उग्रसेन के पुत्र नभ सेन के साथ अपनी पुत्री कमलामेला का विवाह निश्चित कर दिया। साधारण सी स्थिति का व्यक्ति था धनसेन; अत कार्य का समस्त भार उसी पर आ पड़ा।
नारदजी इधर-उधर घूमते हुए उसके घर जा पहुँचे । किन्तु व्यस्त होने के कारण वह उनकी ओर न देख पाया। स्पष्ट ही यह नारदजी का अपमान था और इस अपमान का बदला लिए विना वे कैसे रह सकते थे ? वहाँ से चले तो सीधे सागरचन्द्र के पास जा पहुँचे । ____ सागरचन्द्र श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का पौत्र और निषध का पुत्र था। उसकी घनिष्ठ मित्रता थी शाव से । सागरचन्द्र ने देवर्षि को देखा तो तुरन्त उठकर सत्कार किया । सतुष्ट होकर नारद जी आसन पर विराजे । सागरचन्द्र ने पूछा
नारदजी | आप तो सदा भ्रमण करते ही रहते है, कोई आश्चर्यजनक वस्तु देखी हो तो वताइये।
-मुझे तो उनसेन की पुत्री कमलामेला के समान दूसरी कोई वस्तु नही जंची। ___-क्या विशेषता है उसमे ?
-एक कुलीन कुमारी कन्या मे जो विशेषताएं होनी चाहिए वे सभी उसमे है । इसके अतिरिक्त अनुपम सुन्दरी है वह।
सुन्दरता और वह भी किसी कुमारी कन्या की-ऐसी वस्तु है
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