Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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कुवेर से भेट ___ राजकुमारी उसे पकड़ने का प्रयास करती और वह फुदक कर आगे बढ जाता, कभी पीछे लौट आता तो कभी वाये दाये जा बैठता। कुछ देर तक विनोद करने के वाद हस राजकुमारी के हाथो मे आ गया।
हस को पकड कर राजपुत्री प्रसन्न हुई और उसकी सुकोमल चिकनी देह पर हाथ फेरने लगी।
राजकुमारी इस सुख को स्थायी करने के लिए लालायित हुई। उसने अपनी मखी से कहा
--एक सोने का पिंजरा लाओ। क्योकि विना पिजरे के यह उड जायेगा।
सखी पिंजरा लेने चली गई । अव दो ही रह गये-राजहस और राजकुमारी । मानवी भापा मे राजहस वोला
-पिजरे मे बन्द क्यो करती हो, राज कुमारी ! मुझे छोड दो। मैं तुम्हे प्रिय समाचार सुनाऊँगा। - पक्षी को मनुष्य की भाषा बोलते देखकर कनकवती विस्मित रह गई । स्नेहपूर्वक मधुर वचन कहने लगी- ।
-अरे हस । तू तो वडा रहस्यमयी निकला। बता वह प्रिय समाचार क्या है ?
-प्रिय समाचार प्रिय का समाचार होता है,युवती के लिए। वही मैं लाया हूँ।
कनकवती के मन मे गुदगुदी होने लगी। मुख लज्जा से लाल हो गया पर ऊपरी मन से वोली-धत् ।
राजहस कहने लगा
-सुन्दरी | तुम्हारा स्वयवर होने वाला है। इसीलिए मैं यहाँ आया हूँ कि जैसे तुम्हारी सुन्दरता अनुपम है और गुण अप्रतिम वैसे ही यदुवगी वसुदेव कुमार का रूप और पराक्रम अद्वितीय है । तुम दोनो की जोडी ही उचित रहेगी। तुम उसी के गले में वरमाला डालना।