Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण- कथा - नोलह मान का फल मोलह वर्प
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भगवान अरिष्टनेमि के नमवशरण मे गणधर व दत्त मे रुक्मिणी ने अपने पूर्वभव पूछे तो उन्होंने बताया
घाव मे कीडे
भरतक्षेत्र के मगधदेश में लक्ष्मी नाम का गाँव था । वहां मोम नाम का ब्राह्मण रहता था । उसकी स्त्री का नाम लक्ष्मीमती था । वह आभू'पण पहनकर दर्पण मे अपना रूप निरख कर विभोर हो रही थी । इतने मेनमाधिगुप्त मुनि भिक्षा के लिए आए । वह उनसे घृणा करके निन्दावचन कहने लगी । फलस्वरूप मात दिन बाद हो उसे कुष्ट रोग हो गया । पति के प्रति प्रेम रखकर मरी तो उसी घर मे छछूदर हुई । पूर्वभव के पतिप्रेम के कारण बार-बार नोम ब्राह्मण के पास जाती । ब्राह्मण ने क्रोध करके उसे बड़े जोर से पटका जिसमे मर कर सर्पिणी हुई फिर गधा हुई । नचा वार वार उसी ब्राह्मण के पान जाता तो एक दिन उमने 'पत्थर मार कर उस गधे की टाँग ही तोड दी । उसके पड गए और वह कुए में गिर कर मर गया । मर कर उसी गाँव के बाहर अधा सुअर हुआ । गाँव के कुत्तों ने उसे काट खाया । जिससे मर कर वह मन्दिर नाम के गांव में मत्स्य नाम के घीवर की स्त्री मडूकी ने प्रतका नाम की कन्या हुई । उत्पन्न होते ही उसके माँ-बाप मर गए । एक दिन वह नदी किनारे बैठी थी कि उन्ही नमाधिगुप्त मुनि के दर्शन हो गए । धर्मोपदेश सुनकर वह पर्वो में उपवास करने लगी। दूसरे दिन किमी अर्जिका के साथ हो ली । आयु के अन्न मे ममाधिपूर्वक मरण करके अच्युत स्वर्ग के इन्द्र को प्रियवल्लभा हुई । वहाँ से च्यवकर कुडिनपुर के राजा वामव की रानी श्रीमती से अव रुक्मिणी नाम की पुत्री हुई है ।
(नोट
यहाँ मनूरी के अंडे और बच्चे के हरण की घटना का कोई उल्लेख नही है ।
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