Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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द्र पद राजा ने सभी को विदा कर दिया । पाडव भी द्रौपदी सहित हस्तिनापुर आ गए। - कुछ समय पश्चात् धृतराष्ट्र के पुत्रो को राज्य का लोभ जागा। दुर्योधन ने सभी वृद्धजनो को चाटुकारितापूर्ण विनय से प्रसन्न कर लिया। उसने छलपूर्वक पाडवो से चूत क्रीडा' मे सम्पूर्ण राज्य जीत लिया। युधिष्ठिर ने लोभ के वश द्रौपदी को भी दांव पर लगा दिया और उसे भी हार गए । भीम के कोप से भयभीत होकर द्रोपदी तो वापिस कर दी लेकिन राज्य पर दुर्योधन ने अपना अधिकार जमा लिया। पाडवो को अपमानित करके निकाल दिया।
वनवास की अवधि के वाद पाडव द्वारका पहुँचे। वहाँ समुद्रविजय आदि सभी ने उसका स्वागत किया। दगार्हो ने लक्ष्मीवती, वेगवती, सुभद्रा, विजया ओर रति नाम की अपनी पुत्रियो का विवाह अनुक्रम से युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव के साथ कर दिया। कुन्ती सहित पाँचो पाडव सुखपूर्वक द्वारका मे रहने लगे।
-त्रिषष्टि० ८६
वॉट लो। और द्रोपदी पांचो भाइयो की पत्नी वन गई। इसके आगे इतना उल्लेख और है कि जब द्रपद राज इसके लिए तैयार न हए तो वेदयान ने आकर कहा-द्रौपदी की उत्पत्ति प्रग्नि से हई है । अत यह पाच पतियो की पत्नी होते हुए भी मती रहेगी। तव द्रौपदी का विवाह पाँचौ पाडवो मे हो गया। (ग) उत्तर पुराण के अनुसार-स्वयवर मे द्रोपदी ने अर्जुन के गले मे.
वरमाला डाली (७२।२११) । वैदिक परम्परा के मान्य ग्रन्यो मे चूत क्रीडा का विस्तारपूर्वक उल्लेख है। वहाँ द्रौपदी का चीरहरण, श्रीकृष्ण द्वारा चीर को वढाया जाना, वृतराष्ट्र तथा अन्य गुरुजनो के समझाने पर १२ वर्ष का वनवास और एक वर्ष के अज्ञातवास की शर्त पर द्रौपदी को मुक्त करना आदि विविध प्रनगो का वर्णन है। इस वनोवास मे पाँचो पाडव और द्रौपदी गए थे।