Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मे ठहरे हुए हैं। उनके साथ वैदर्भी भी है। चारण लोग उत्तम वाद्यो से उनकी स्तुति कर रहे हैं । वही स्वर आपके कानो तक आ रहा है । ___- रुक्मि को यह समझते देर न लगी कि यह सब चमत्कार प्रद्य म्न का है। उसने तुरन्त ही उनको आदरपूर्वक बुलाया और वैदर्भी का विधिवत विवाह प्रद्यम्न के माथ कर दिया। विदा करते समय रुक्मि ने हँस कर कहा
-छल-कपट मे वेटा वाप से कुछ अधिक ही निकला । कृष्ण ने तो युद्ध मे मुझे जीता और तुमने बुद्धि से ।
-सवाया कहिए मातुल | क्योकि शक्ति से युक्ति प्रबल होती है। प्रद्युम्न ने उत्तर दिया ।
रुक्मि हँस पडा और प्रेमपूर्वक सबको विदा कर दिया।
सभी लोग द्वारका आ पहुँचे । रुक्मिणी ने बहुत उत्सव मनाया। प्रद्युम्न वैदर्भी के साथ सूखपूर्वक रहने लगा।
गाव का विवाह भी हेमागद राजा की वेश्या की अप्सरा जैसी सुन्दर पुत्री सुहिरण्या' के साथ हो गया।
-त्रिष्टि० ८७ -वसुदेव हिंडी, पीठिका।
१ मुहिरण्या का परिचय वसुदेव हिंडी पीठिका मे इस प्रकार दिया है
एक वार श्रीकृष्ण की आजा से कचुकी ने शावकुमार से निवेदन किया- 'हे देव । रत्नकरडक उद्यान मे गणिका पुत्री सुहिरण्या और हिरण्या का नृत्य होगा, आप देख आवे ।'
शावकुमार रथ मे बैठकर वहाँ पहुँचा और उसने नृत्य देखा। सुहिरण्या ने बत्तीस प्रकार का नृत्य करके शाव का मन मोह लिया। शाव ने आकर्षित होकर उससे वाग्दान कर लिया।