Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२
निकल आए । कृष्ण भी शस्त्र-सज्जित होकर वाहर निकले और उच्च स्वर मे बोले
-किस दुर्बुद्धि की शामत आई है ?
प्रद्य म्न ने उत्तर तो कुछ दिया नहीं । जोर से हँस पडा । कृष्ण की दृष्टि आकाश की ओर उठ गई। देखा-एक नवयुवक रुक्मिणी को रथ मे विठाए हँस रहा है । कृष्ण की आँखे लाल हो गई । शस्त्र उठाकर प्रहार करने का प्रयास किया ही था कि हाथ से धनुष गायव । अन्य अस्त्र भी नदारद हो गए । हतप्रभ रह गए वासुदेव । __ वलभद्र भी चकित थे। सम्पूर्ण सुभट किकर्तव्यविमूढ । मानो किसी ने स्तभित कर दिया हो ।
श्रीकृष्ण के चित्त मे खेद व्याप्त हो गया। तभी आकाश से नारद उतरे और वोले
-कृष्ण | चकित मत हो । यह तो तुम्हारा ही पुत्र है, प्रद्युम्न । जो सोलह वर्ष पहले तुमसे विछुड गया था।
नारद के वचन सुनकर सभी सन्तुष्ट हुए । प्रद्युम्न ने भी अपनी विद्या समेटी और पिता के चरणो मे आ गिरा। विह्वल होकर कृष्ण ने उसे कंठ से लगा लिया। उनके हर्ष का ठिकाना न था । बलभद्र आदि सभी आनदित हो गए। कृष्ण ने प्रद्युम्न को अपने अक मे विठा लिया। मानो वह सोलह वर्ष का युवक न होकर सोलह दिन का अवोध शिशु ही हो। वे वार-वार उसका मस्तक चूमने लगे।
प्रद्युम्न के आगमन से द्वारका मे प्रसन्नता की लहर दौड गई। स्थान-स्थान पर उत्सव मनाए जाने लगे। रुक्मिणी के तो मानो प्राण ही लौट आए। उसके महल में दीवाली ही मनाई जाने लगी। स्वामिनी के साय-साथ दासियो के मुख भी गुलाब की भॉति खिल रहे थे।
वासुदेव को सोलह वर्ष बाद पुत्र मिला तो भानुक के विवाह की वात मानो भूल ही गए। तव दुर्योधन ने आकर कहा