Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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शांब का जन्म
प्रद्युम्न का पराक्रम देखकर सत्यभामा चकित रह गई। उसके हृदय मे नारी सुलभ लालसा जाग उठी । रुक्मिणी के प्रति ईर्ष्या भी जाग्रत हुई । वह कोप-भवन मे जा लेटी । ज्योही श्रीकृष्ण को मालूम हुआ, वे पहुंचे और पूछने लगे
- प्रिये | क्या किसी ने तुम्हारा अपमान किया है ?
नही। - तो फिर रुष्ट होने का कारण ? -आप है, आप। --क्यो ? मैंने क्या किया ? -~-आप ही ने तो किया है। ---कुछ बताओ भी तो ? --रुक्मिणी को तो प्रद्युम्न जैसा पराक्रमी पुत्र और मुझे ? -इसमें मेरा क्या दोष ? यह तो भाग्य की वात है।
-~मैं कुछ नही जानती । आप कुछ भी करिये, मुझे प्रद्युम्न जैसा ही पराक्रमी पुत्र चाहिए। __ पत्नी की हठ के सामने पति को झुकना पडा । आश्वासन दिया
-~-मैं अपना भरपूर प्रयास करूंगा कि तुम वीर-पुत्र की माता वनो।
श्रीकृष्ण ने नैगमेषी देव को उद्दिष्ट करके अष्टमभक्त युक्त प्रौषध व्रत ग्रहण किया। देव ने प्रगट होकर पूछा
-क्या इच्छा है वासुदेव ? -सत्यभामा को प्रद्युम्न जैसे पराक्रमी पुत्र की इच्छा है ।