Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२
अत यह प्रचलित लोक-परम्परा के विपरीत पाँच पति वाली ही
होगी ।
सभी ने मुनि का कथन स्वीकार किया किन्तु फिर भी एक शका रह ही गई
- भगवन् । इस प्रकार तो स्वयं द्रौपदी और पाँचो पाडवों का लोकापवाद होगा ?
- हाँ कुछ अशो मे तो होगा किन्तु फिर भी पूर्वकृत तपस्या कारण द्रौपदी की गणना सतियो मे ही होगी ।
- पच भर्तारी और सती ? – एक ओर से प्रश्न हुआ ।
- हाँ ऐसा ही । कर्म की लीला बहुत विचित्र है । मुनिश्री ने कहा और आकाश में उड गए ।
सभी ने उनका वदन किया और जब तक वे दिखाई दिये उनकी ओर देखते रहे ।
द्रौपदी का विवाह पाँचो पॉडवो' से हो गया ।
१ (क) पाडव चरित्र मे देवप्रभ सूरि ने द्रौपदी स्वयंवर में राधावेध का उल्लेख किया है | अर्जुन ने राधावेध किया | द्रौपदी के हृदय मे पाँचो पाडवो के प्रति अनुराग उत्पन्न हुआ । उसने अर्जुन के
मे वरमाला डाली, वह पांचो पाडवो के गले दिसाई पडने लगी । सनी विचार मे पड गए तभी चारण श्रमण ने आकर बताया कि द्रौपदी निदानकृत है । उन्होंने द्रौपदी के पूर्वभव का भी वर्णन किया । (सर्ग ४)
( स ) इमी प्रकार वैदिक परम्परा के मान्य ग्रंथ महाभारत मे भी राधावेध का उल्लेख है—
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जव लाक्षागृह से निकल कर पाँचो पाडव और कुन्ती ब्राह्मण वेश राधावेध मे द्रौपदी को जीत लाया । बाहर से ही माँ को आवाज देकर कहा - माँ | मैं एक
मे द्रुपद राजा की नगरी मे पहुँचे तो अर्जुन
अद्भुत वस्तु लाया हूँ । कुन्ती ने बिना देखे ही कह दिया- पॉची भाई