Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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छोटी उम्र : बड़े काम
गत्रुता की गांठ इतनी होती है कि जीत्र के भव-भव तक तो चलती ही है, का परपरागत भी चलती है । पिता का बदला पुत्र चुकाना चाहता है और रितामह का पौन | साथ ही व्यक्ति का बदला उसके पुत्र-पौत्रो से भी लिया जाता है। सूर्पक विद्याधर' ने भी वसुदेव मे ऐसा ही वैर बाँध लिया था। पिता का बदला चुकाने आई सूर्पक की दो पुत्रियाँ-बमुदेव से नहीं, वरन् उनके पुत्र कृष्ण से।
मूर्पक-पुत्री गकुनि और पूतना वसुदेव का तो कुछ विगाड ही नही सकती थी। उन्होने वासुदेव कृष्ण के प्राण लेने की योजना बनाई। वे दोनो विद्यावरियाँ गोकुल मे आकर अवसर ढूँढने लगी। एक दिन उन्हे अवसर मिल भी गया ।
नद और यशोदा दोनो ही घर मे नही थे । श्रीकृष्ण अकेने ही घर के एक कक्ष मे अपनी छोटी नी शय्या पर पडे-पडे किलकारियाँ भरभर कर क्रीडा कर रहे थे । शकुनि और पूतना ने अच्छा अवसर देखा। "
बालक कृष्ण को कक्ष से बाहर ऑगन मे निकाल लाई । शकुनि एक गाडी कही ने घसीट लाई और उसका पहिया कृष्ण पर रख कर दवाने लगी । वह दवाने के लिए बल भी लगातो जाती और भयकर आवाज से चिल्लाती भी जाती। उसने शारीरिक वल-प्रयोग
और भयभीत करके कृष्ण के प्राण-हरण का पूरा प्रयास किया किन्तु सफल न हो सकी। १ सूर्पक विद्याधर दिवस्तिलक नगर के राजा त्रिशिखर का पुत्र था।
त्रिशिखर को वसुदेव ने युद्ध में कठच्छेद करके मार डाला था। मदनवेगा के कारण भी सूर्पक ने वसुदेव मे शत्रुता बांध ली थी।