Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
जैन कथामाला भाग ३२
सोचते-सोचते वसुदेव ने एक उपाय खोज ही निकाला। वे वोने
-ऐसा करो देवकी कि तुम गोपूजा के बहाने जाओ। इससे कस को सदेह भी नही होगा और तुम्हारी इच्छा भी पूरी हो जायेगी।
देवकी को यह उपाय उचित लगा। वह अन्य अनेको स्त्रियो के -साथ गोपूजा के बहाने गोकुल मे गई। वहाँ उसने यशोदा के अक में अपना पुत्र देखा। ___ श्यामवर्णी शिशु यगोदा की गोदी मे किलक रहा था। उसका रग निर्मल नील मणि के समान था, हृदय पर श्रीवत्स लक्षण, नेत्र जैसे प्रफुल्लित कमल, हाथ और पैरो मे चक्र का शुभ लक्षण-पुत्र को देख कर देवकी का हृदय आनन्द से भर गया । वह पुत्र को अपलक नेत्रो से देखती रही।
उपाय तो मिल ही गया था देवकी को। वह हर मास गोपूजा का वहाना करती और गोकुल पहुंच जाती। दिन भर पुत्र का मुख देखती, आनदित होती और सायकाल वापिस लौट आती। __ भाग्य की विडम्बना–ससार मे पशु-पक्षी तक की माताएं भी अपने शिशुओ को गोद मे लेकर सोती है और देवकी · ।
लोक गतानुगतिक होता है। वसुदेव पत्नी गोपूजा करती तो उसकी देखा-देखी अन्य अनेक स्त्रियाँ भी गो-पूजन करने लगी। ससार में गो-पूजा' प्रचलित हो गई।
-त्रिषटि० ८५ -उत्तरपुराण ७०/३८४-४११
१ गो-पूजा के सम्बन्ध में श्रीमद्भागवत में यह उल्लेख है कि गोकुल वासी
पहले इन्द्र-पूजा किया करते थे। वे उसे वर्षा का स्वामी मानते थे । श्रीकृष्ण ने इन्द्र का गर्व हरण करने के लिए उसकी पूजा बन्द करा दी और गो-पूजा का प्रचलन किया। इस पर रुष्ट होकर इन्द्र ने सात दिन तक