Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३२
आदेश पाकर निमित्तज्ञ तो अपनी गणना मे लगा और कस विचारमग्न हो गया। आज ही तो वह देवकी के पास अचानक ही घूमताघामता जा पहुँचा था और उस नकटी बालिका को देखकर उसे 'देवकी का सातवाँ गर्भ मुझे मारेगा' इस बात की स्मृति हो आई थी। इसी कारण उसने निमित्तज्ञ को बुलवाकर अपने हृदय की शका दूर करने का प्रयास किया था।' अब निमित्तज्ञ के यह कहने पर कि 'सातवाँ गर्भ किसी अन्य स्थान पर अभिवृद्धि पा रहा है' उसकी चिन्ता और भी वढ गई थी । कस अपने हृदय मे अपने शत्रु से निपटने की योजनाएँ बनाने लगा; तभी निमित्तज्ञ ने सिर ऊँचा करके कहा
-राजन् । मुनि का कथन अटल सत्य है । आपका शत्रु गोकुल मे अभिवृद्धि पा रहा है।
कम ने सावधान होकर निमित्तज्ञ के कथन को सुना और पूछने लगा
-उसकी पहिचान क्या है ? निमित्तल ने बताया
१. (क) भवभावना २३४७ से २३५० (ख) श्रीमद्भागवत मे यह सूचना कस को योगमाया द्वारा दिलवाई है ।
योगमाया श्रीकृष्ण की माया है और नद के घर कन्या रूप मे उत्पन्न हुई थी। उसे वसुदेवजी ले आते है और कस उस कन्या को मारने के लिए उद्यत होता है तो वह कम के हाथ से छूट कर आकाश मे 'उड जाती है और भविप्यवाणी करती है
अरे मूर्ख । मुझे मारने मे तुझे क्या मिलेगा ? तेरे पूर्वजन्म का शत्रु तुझे मारने के लिए किमी स्थान पर उत्पन्न हो चुका है। . . (श्रीमद्भागवत, दशवा स्कन्ध, अध्याय ४, श्लोक १२) इमी कारण कम ने शकुनि, पूतना आदि को गोकुल के सभी नवजात शिशुओ की हत्या करने भेजा था।