Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण - कथा - मातृ-भक्ति
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किनारे पर कौतुक देखते हुए लोगो को वही छोडकर कृष्णबलराम दोनो भाई मथुरा की ओर चल दिये ।
- त्रिपप्टि ० ८/५
- उत्तर पुराण ७०/८३६-४७४
उसने आज्ञा दी कि नन्द के पुत्र महित मभी गोप अविलव युद्ध के लिए तैयार हो जायें ।
( हरिवश पुराण ३६ / ६-१० एव उत्तर पुराण ७० / ४६२-४७१) (ख) श्रीमद्भागवत मे कालिया नाग की कथा विस्तार से दी गई है। कालिय का नक्षिप्त परिचय इस प्रकार है
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नागो का निवास स्थान रमणक द्वीप था ।
Treat की माता विनता और सर्पों की माता केंद्र मे परस्पर शत्रुता थी | माता के वैर के कारण गरडजी जिस नाग को देखते उमे खा जाते । तव व्याकुल होकर सर्पो न ब्रह्माजी की शरण ली । ब्रह्माजी ने निर्णय कर दिया कि सप परिवार प्रत्येक अमावस्या के दिन एक सर्प गरुडजी की भेट करे और गरुड नर्पो का हनन करना छोड़ दे ।
इस निर्णय के अनुसार गरको प्रति अमावस्या एक सर्प मिल जाता किन्तु यह कालिय नाग वढा घमण्डी था । इसके १०१ फण थे और विप भी अत्यधिक । यह गरुड को दिए जाने वाले नाग को भी खा जाता ।
यह जान कर गरुडजी को वडा कोष आया । इसलिये गरुड ने इस नाग को मार डालने के विचार से उस पर आक्रमण किया । कालिय भी प्रस्तुत था । उसने अपने १०१ मुखो ने गरुडजी के शरीर मे विप व्याप्त कर दिया । गन्ड ने अपने पक्ष से इसे घायल कर दिया ।
विह्वल होकर गरुड जी तो विष्णु के पास जा पहुचे और घायल कालिय यमुना के इस ग्रह मे आ छिपा । यह द्रह ( यमुना का
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