Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
श्रीकृष्ण-कथा-वसुदेव-कनकवतो विवाह दो कगन, स्मरदारुण नाम का कटिसूत्र, दिव्य पुष्पमाला और विलेपन दिए। ___इन दिव्य वस्त्रालकारो से विभूपित होकर वसुदेव दूसरे कुबेर ही लगने लगे । उपस्थित सभी देव वसुदेव की प्रशसा करने लगे।
कुबेर का आगमन ऐसी साधारण घटना नहीं थी कि राजा हरिश्चन्द्र को ज्ञात न होती। हरिश्चन्द्र राजा ने भी कुबेर को अजलि वद्ध होकर प्रणाम किया और बोला___-देव ! आपके आगमन से मेरा नगर पवित्र हो गया। मेरे और मेरी पुत्री के अहोभाग्य कि आप उसके स्वयवर मे पधारे । आप स्वयवर अवश्य देखिए।
-मैं इसी अभिप्राय से आया हूँ। -कुबेर ने राजा को आश्वासन दिया।
आश्वस्त होकर राजा हरिश्चन्द्र ने शीघ्र ही स्वयवर की व्यवस्था कराई।
स्वयवर मडप सज गया। अनेक देशो के राजा वहाँ उत्तम वेशभूषा मे आ विराजे । तभी कुबेर ने अपने दिव्य विमान मे बैठ कर प्रवेश किया। सभी ने उठ कर उसका स्वागत किया । कुबेर अपने लिए निर्मित एक उच्चासन पर बैठ गया । अपने पास ही उसने वसुदेव कुमार को एक दूसरे सिहासन पर बिठा लिया । अपनी नामाकित अर्जुन जाति के स्वर्ण की एक मुद्रा वसुदेव को देकर बोला
-भद्र | इसे पहन लो। .
वसुदेव ने कनिष्ठिकार मे वह मुद्रा धारण कर ली। मुद्रिका के प्रभाव से उनका रूप कुवेर का सा हो गया । अव स्वयवर मडप मे दो कुवेर दिखाई देने लगे। उपस्थित लोग कहने लगे
-अहो । धनद कुबेर अपने दो रूपो मे उपस्थित है ।
१ कटिसूत्र-कमर मे पहने जाने वाला पुरुषो का आभूषण । २ कनिष्ठिका हाथ की चौथी यानी सब से छोटी अगुली को कहा जाता है।