Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कयामाला . भाग ३२
-स्वामी । आज आप किस विचार में डूबे है ? --एक विचित्र वात हुई। देवक ने उत्तर दिया। -वह क्या ? -देवी ने उत्सुकता प्रकट की तो राजा ने बताया
-आज कस अपने साथ शौर्यपुर के राजकुमार दशवे दशाह वसुदेव को लेकर आया और उसने देवकी की याचना की।
वसुदेव का नाम सुनते ही देवकी के कान खडे हो गए। उसके गालो पर लाली दौड गई । रानी देवी ने पूछा
फिर आपने क्या उत्तर दिया? -उत्तर क्या देता? कह दिया विचार करके वताऊँगा। -और विचार क्या किया ?
—मुझे तो इस प्रकार से याचना करना कुछ रुचा नहो, इन्कार कर दूंगा।-राजा देवक के मुख से निकला।
'इन्कार' शब्द सुनते ही देवकी की आँखे डवडवा आईं। उसके मुख पर उदासी छा गई। रानी देवी की प्रसन्न मुख-मुद्रा मलिन हो गई। 'घर बैठे दामाद मिलने' की प्रसन्नता तिरोहित हो गई। राजा देवक ने मॉ-बेटी की यह दशा देखी तो बोला
-मैने तो अपना विचार मात्र प्रगट किया था, निर्णय तो तुम्हारी सम्मति से ही होगा।
–मेरी सम्मति | मेरी राय मे तो हमे वसुदेव से अच्छा वर दूसरा नहीं मिलेगा; तुरन्त हाँ कर देनी चाहिए। ___'जैसी तुम्हारी इच्छा' कहकर राजा देवक ने मत्री को भेजकर कस और वसुदेव को बुलवाया। इनका प्रेमपूर्वक स्वागत करके पुत्री देने का निर्णय बता दिया।
देवकी को जैसे मुह माँगा वरदान मिला। वह आनन्द विभोर हो गई।
शुभ मुहूर्त मे वसुदेव के साथ देवकी का विवाह सम्पन्न हो गया। पाणिग्रहण सस्कार के समय - देवक ने विशाल सपत्ति के साथ दस गोकुलो के अधिपति नन्द को भी गायो के साथ समर्पित कर दिया।