Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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कुवेर से भेंट
अशोक वृक्ष के पल्लव जैसे रंग की नयनाभिराम रक्तवर्णी चोच, । चरण और लोचन वाला एक राजहस राजकुमारी कनकवती के महल पर आ बैठा । गले मे सुन्दर स्वर्ण घुरुओ की माला तथा उसकी मद-मद चाल ने राजकुमारी का मन मोह लिया।
राजकुमारी कनकवती पेढालपुर नगर के राजा हरिश्चन्द्र और रानी लक्ष्मीवती की अनुपम सुन्दरी पुत्री थी। जिस समय वह उत्पन्न हुई, पूर्व जन्म के स्नेह के कारण धनपति कुवेर ने कनक (स्वर्ण) की वर्षा की, इसी कारण उसका नाम कनकवती रखा गया। कनकवती जितनी रूपवती थी उतनी ही गुणवती भी। स्त्रियोचित चौसठ कलाओ मे वह निष्णात थी।
उसकी दृष्टि राजहस के कठ पर जाकर अटक गई। विचार करने लगी-'यह राजहस अवश्य ही किसी पुण्यवान पुरुप का पालतू है। अन्यया गले मे स्वर्ण माला कहाँ से आती ?'
राजहस तब तक गौख मे उतर आया और धीरे-धीरे इस प्रकार चहलकदमी करने लगा मानो नृत्य ही कर रहा हो । राजकुमारी का मन उससे विनोद करने को मचल उठा। हसगामिनी कनकवती उस हस को पकडने के लिए धीरे-धीरे अचक-पचक कदम रखती हुई बढीकही आवाज न हो जाय और हस उड जाय । हस भी कुछ कम नही था वह भी कनकवती की गतिविधियो पर नजर रखे था । ज्यो ही राजपुत्री ने उसे पकडने के लिए हाथ वढाया त्यो ही फुदक कर आगे वढ गया।
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