Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कयामाला भाग ३१
वश मे कर लिया था । सन्यासी को तो राजा ने मार डाला किन्तु यह इसके मत्र के प्रभाव से मुक्त नही हो पाई । अव भी उसकी अस्थियो की माला कठ मे धारण किये है।' " वसुदेव ने अपने मत्र वल का चमत्कार दिखाया और नदिपेणा को स्वस्थ कर दिया। उसने अस्थियो की माला उतार फेकी और अपने पति जितगत्रु की इच्छा करने लगी।
जितशत्रु ने इस उपकार के बदले वसुदेव को अपनी व्हन केतुमती दी।
एक दिन जरामव के द्वारपाल डिभ ने आकर जितशत्रु से कहा
-राजन् | मेरे स्वामी ने कहलवाया है कि नदिपेणा को स्वस्थ करने वाला हमारा उपकारी है। उने हमारे पास भेजो।
जितगत्रु ने यह बात स्वीकार की। उसने वसुदेव से कहा
-भद्र । नदिपेणा राजा जरासध की बहन है । उसके स्वस्थ होने मे वह बहुत प्रसन्न हुआ है। तुम्हे पुरस्कृत करने हेतु नुलाया है । तुम जाओ।
वसुदेव को जरासध और जितशत्रु की वात युक्तिसगत लगी। वे द्वारपाल के साथ रथ मे बैठकर राजगृही नगरी पहुँचे। नगर मे प्रवेश करते ही रक्षको ने उन्हें वाँध लिया। विस्मित होकर वे कहने लगे---
-यह कैसा पुरस्कार मिल रहा है, मुझे ' मैंने जरासध की वहन को स्वस्थ किया और उसने मुझे वदी बना लिया। रक्षको ने बताया
-किसी जानी ने राजा जरासंध को बताया था कि नदिपेणा को स्वस्य करने वाले पुरुष का पुत्र तेग काल होगा। इसीलिए तुमको वाँधा गया है।
-अब क्या करोगे तुम लोग ? मुझे जरामध के सामने पेश करोगे।
-नही | उसकी आवश्यकता नही है। हम लोगो को आदेश है कि तुम्हे वधस्थल पर ले जाकर मार दिया जाय ।