Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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वसुदेव का वीणा-वादन
चलते-चलते वमुदेव विजयखेट नगर मे जा पहुँचे । उनकी कलागुण-सम्पन्नता से प्रभावित हो नगरपति राजा सुग्रीव ने अपनी दोनो पुत्रियो-श्यामा और विजयसेना का लग्न उनके साथ कर दिया। अपनी दोनो स्त्रियो के साथ वे सुख से रहने लगे। विजयसेना से उनके अक र नाम का पुत्र हुआ। __ अचानक ही उनका दिल उचट गया और एक रात्रि को वे राज महल छोडकर चल दिये । चलते-चलते वे एक घोर जगल मे जा पहुँचे । मार्ग की थकान के कारण उन्हे प्यास लग आई । प्यास बुझाने के लिए वे जलावर्त नाम के एक सरोवर के पास जा पहुंचे।
वसुदेव तृपातृप्ति के लिए सरोवर मे उतरने को ही थे कि वीच मे एक वाधा आ पडी। सामने से आकर एक विशालकाय हाथी ने उनका मार्ग रोक लिया । वसुदेव ने प्रयास किया कि मुठभेड न हो —गजराज अपनी राह चला जाय और वे अपनी प्यास बुझा कर अपनी राह पकडे किन्तु गजराज विगाल चट्टान की भॉति अड गया। जव दूसरा मार्ग न वचा तो वसुदेव कुमार सिह के समान उछलकर उसकी गर्दन पर जा चढे और अपने भुजदडो मे उसकी गर्दन जकड कर उसे निर्मद कर दिया।
यह दृश्य आकाश से अचिमाली और पवनजय नाम के दो विद्याधर देख रहे थे। वे तुरन्त नीचे उतरे और उन्हें अपने साथ कुजरावर्त नगर को ले गये । वहाँ के राजा अशनिवेग ने अपनी पुत्री ज्यामा का लग्न उनके साथ कर दिया।