Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा--एक कोटि द्रव्य दान का विचित्र परिणाम
-~-यही तो पूछ रहा हूँ कि मेरा अपराध क्या है? मुझे क्यो वन्दी वनाया जा रहा है।
-~-राजाजा ह आपको पकड़ने की। -~~-क्या जुआ खेलना अपराध है या याचको को दान देना।
-इन दोनो मे से अलग-अलग तो कोई अपराध नहीं है किन्तु एक कोटि स्वर्ग द्रव्य पामे के खेल मे जीतना और याचको को देना अवश्य घोर अपराव है।
विम्मित होकर वसुदेव ने पूछा--तुम्हारी बातो मे कोई रहस्य छिपा हुआ है ? प्रनुख राजसेवक ने उत्तर दिया
~~हाँ भद्र । इसमें महाराज जरासंध के जीवन का रहस्य छिपा है। किसी ज्ञानी ने उसे बताया है कि 'जो पुरुप यहाँ आकर एक कोटि स्वर्ण द्रव्य पासे के खेल में जीते और उसे ज्यो की त्यो याचको को दान दे दे, उसका पुत्र तुम्हारा काल होगा ? अब समझ गये अपना अपराध ? व्यर्य की बात नहीं, चुपचाप हमारे मात्र चलते रहो।
वसुदेव को समझ में अपना अपराध आ गया । राजकर्मचारी उन्हे समीप के एक पहाड पर ले गरे । चमडे की पट्टियो से कस कर वाँधा और उछाल कर फेक दिया। परिणाम जानने की आवश्यकता
तो थी ही नहीं । 'निश्चय ही मर जायेगा' यद्र मोच कर राजकर्मचारी । सतुष्ट होकर तत्काल लोट गये। ___ पहाड मे गिरे वसुदेव कुमार तो भूमि तक न पहुँच सके । वीच में ही कुछ ऐसा चमत्कार हुआ कि उनकी दिशा वदल गई । अधी दिगा की वजाय तिरछी दिशा में वह्न लगे। कुछ समय तक वहते रहने के वाद एक पर्वत शिखर पर जाकर टिक गये। ____ आधार मिलते ही बसुदेव ने इधर-उधर दृष्टि दोडाई। उन्हे वेगवती के पाँव दिखाई दिये । चर्म-बचनो को पराक्रमी वसुदेव ने कच्चे सूत की तरह तोड डाला और आगे वढकर वेगवती को अक मे भर लिया। पूछने लगे