Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैन कथामाला भाग ३१ इस समय प्रहसित नाम का विद्याधर राजा है। उसकी हिरण्यवती नाम की स्त्री मै हूँ। मेरे पुत्र का नाम सिहदष्ट्र है ओर उसकी पुत्री है नीलयशा । वहीं नीलयगा तुमने उद्यान में जाते समय देखी थी।
मातगी ने वसुदेव को सवोधित किया
-हे कुमार | नीलयशा तुम्हे देखकर कामपीडित हो गई है। तुम उसका पाणिग्रहण करो।
पूरी घटना सुनने के बाद बसुदेव कुमार बोले
—विवाह का निर्णय अचानक कैसे हो सकता है ? शुभ लग्न आदि भी तो आवश्यक है।
-इस समय मुहूर्त शुभ ही है। —कुछ समय के लिए ठहर जाओ।
-वह कन्या विलव नही सह सकती । उसकी इच्छा शीघ्र ही पूर्ण करिए, आपकी अति कृपा होगी।
वसुदेव इस आग्रह से कुछ चिढ से गए। उन्होने रुखाई से उत्तर दिया___-मैं आपको विचार कर उत्तर दूंगा। फिर कभी आइये मेरे पास।
मातगी वसुदेव की रुखाई न सह सकी। उसके आग्रह का यह रूखा उत्तर उसे खल गया। कडे स्वर मे उसने प्रत्युत्तर दिया
—मैं तुम्हारे पास आऊँगी या तुम मेरे पास, यह तो समय ही बताएगा।
यह कहकर मातगी हिरण्यवती वहाँ से चली गई।
श्मशान मे घोर रूप वाली मातगी हिरण्यवती के सम्मुख स्वय को पाकर वसुदेव कुमार अचकचा गये । तभी मातगी का स्वर सुनाई पडा हे चन्द्रवदन | बहुत अच्छा किया, जो तुम यहाँ आये।