Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
५८
जैन कथामाला भाग ३१
-मैं आप लोगो के व्यवहार के रहस्य को नहीं समझ पाया। -कुमार | हमारे व्यवहार मे कोई रहस्य नहीं है ।
-यह रहस्य नही तो ओर क्या है ? आपका जामाता मुझे कपट 'पूर्वक हरण करके न जाने कहाँ ले जाना चाहता था। आपकी पुत्री आग्रहपूर्वक यहाँ ल आई और आप मेरा आदर इतना अधिक कर रहे है कि
-कि क्या ? कुमार | आगे कहिए । --- कि मुझे इसम भी कोई पड्यन्त्र नजर आने लगा है। -पड्यन्त्र कुछ भी नहीं है। -तो इस व्यवहार का कारण ? -राजाजा ।
-राजाजा ? चौक कर पूछा कुमार ने इसका कारण वता सकेगे, आप?
--अवश्य । इसीलिए तो पुत्री वनमाला आपको लिवाकर लाई है। यह कह कर, वनमाला का पिता बताने लगा
इस नगर के राजा का नाम है कपिल और उसकी एक पुत्री है कपिला । कपिला युवती हुई तो इसके वर के सवध मे राजा ने एक जानी से पूछा । उस ज्ञानी ने बताया—'जो पुरुप तुम्हारे स्फुलिगवदन (घोडे का नाम) अन्व का दमन करेगा वही कपिला का पति होगा।'
राजा ने पुन पूछा-वह पुरुप इस समय कहाँ है ? ज्ञानी ने बताया-समीप ही गिरिकूट ग्राम मे ।
यह जानकर राजा कपिल ने मेरे जामाता इन्द्रजालिक इन्द्रगर्मा को आपको यहाँ लाने के लिए भेजा किन्तु आप बीच में ही शिविका से कूद कर न जाने कहाँ चन गये ? अव भाग्य से यहाँ आ गये है।
अव तो आप समझ गये होगे हम लोगो के व्यवहार का रहस्य ।
वसुदेव कुमार ने स्वीकृति मे गरदन हिला दी । इसके पश्चात उन्होने उस अन्व का दमन किया और कपिला के साथ विवाह ।