Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कथा-वसुदेव का वीणावादन
सेठ चारुदत्त ने सभी गायको को विदा करके कुमार को रोक लिया 1 बडे आदर-सत्कार के साथ उन्हे अपने घर लाया।
चारुदत्त के घर मे विवाह के मगल वाद्य बजने लगे। विवाह की तैयारियाँ होने लगी। लग्न का दिन भी आ गया । वर-वधू लग्न-मडप मे बैठे थे उस समय मेठ चारुदत्त ने बड़े स्नेह से पूछा
-कुमार | अपना गोत्र बताओ जिससे मै उसे उद्देश्य कर दान हूँ।
कुमार ने हँसकर उत्तर दिया--आपकी जो इच्छा हो वही गोत्र समझ लीजिए। सेठ कुमार के शब्दो मे छिपे व्यग को समझ गये । बोले~~यह वणिक-पुत्री है, इसीलिए व्यग कर रहे है आप ?
-~-इसमे सन्देह भी क्या है ? वणिक् पुत्री तो वणिक् पुत्री ही रहेगी। ___-नही कुमार । जव तुम्हे इसके वश का परिचय प्राप्त होगा तब तुम आश्चर्य करोगे । यह अवसर उस लम्बी घटना को सुनाने का नही है।
वसुदेवकुमार आश्चर्यचकित होकर सेठ की ओर देखने लगे। सेठ ने ही पुन कहा___ --तुम्हारे छिपाने पर भी मैं जान गया हूँ कि तुम्हारा नाम वसुदेव कुमार है और तुम यदुवंशी क्षत्रिय हो।
वसुदेव की आँखे विस्मय से फटी रह गई। मेठ ने कुमार को विस्मित ही छोडकर विवाह की रस्मे पूरी की।
गायनाचार्य सुग्रीव और यशोग्रीव ने अपनी पुत्रियाँ श्यामा और विजया का विवाह वसुदेव के साथ कर दिया।