Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
३२
जैन कथामाला भाग-३१ यह कह कर ब्राह्मण अपनी राह चला गया और वसुदेव जा पहुचे गायनाचार्य सुग्रीव के घर । सुग्रीव को अभिवादन करके अपना मतव्य प्रकट किया___मैं गौतम गोत्री स्कन्दिल नाम का ब्राह्मण हूँ। मेरी इच्छा -गधर्वसेना से परिणय करने की है। आप मुझे शिष्य रूप में स्वीकार करके सगीत सिखाइये।
गायनाचार्य ने उन्हे नजर भर देखा और चुप हो गये । मुंह से न 'हाँ' कहा न 'ना'। वे किस-किस का आदर करते ? वहाँ तो रोज दो-चार युवक गधर्वसेना की गध से वावगे होकर आते थे। __वसुदेव ने गायनाचार्य की 'हाँ' 'ना' की चिन्ता नही की। वे वही रहने लगे । अनाडी के समान वे गायनविद्या सीखते और ग्राम्य वचन' बोल कर लोगो का मनोरजन करते ।
प्रतियोगिता वाले दिन आचार्य सुग्रीव की स्त्री ने उन्हे पहनने के लिए सुन्दर वस्त्र का जोटा (चागा) दिया । वसुदेव ने वह चोगा अपने पुराने वस्त्रो के ऊपर ही पहिन लिया और प्रतियोगिता स्थल की ओर चल दिये। ____ इस विचित्र वेश-भूपा के कारण नगर निवासी उनका उपहास करते, खिल्ली उडाते। ___'तुम्हे ही गधर्वसेना वरण करेगी। जल्दी-जल्दी चलो ।' इस प्रकार कहते हुए अनेक युवक उनके साथ चलने लगे ।
नगर निवासियो के उपहास मे स्वय भी हँसते हुए कुमार वसुदेव प्रतियोगिता-स्थल पर जा पहुंचे। ___ युवको ने मुख से ही उनकी हँसी नही उडाई वरन् वे कुछ और आगे बढ गये । उन्हे एक ऊँचे आसन पर बिठा दिया गया। ___ वसुदेव कुमार सव कुछ समझ रहे थे किन्तु उन्होने इस ओर कोई ध्यान ही दिया। उन्हे अपनी कला पर पूर्ण विश्वास था। १ व्याकरण से रहित अशुद्ध उच्चारण पूर्वक बोले गये वचन जो सभ्य
और मुसस्कृत व्यक्तियो के हास्य का कारण होते हैं ।