Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीकृष्ण-कया--कस का पराक्रम
वसुदेवकुमार के पास कस को अपनी रुचि के अनुकूल वातावरण मिला । कुमार के निर्देशन मे वह अस्त्र-शस्त्र विद्या सीखने लगा। अन्य कलाओ का ज्ञान भी वसुदेव ने उसे करा दिया। कस वसुदेव से कलाएँ और विद्याएँ सीखता हुआ युवा हो गया। उसके अग-प्रत्यग पूर्ण विकसित हो गए और वल-पराक्रम भी बढ गया।
शोर्यपुर के राजा समुद्रविजय अपने सभी छोटे भाइयो' तथा सभासदो के साथ राज्य सभा मे वैठे हुए थे। तभी द्वारपाल से आज्ञा लेकर एक दूत ने प्रवेश किया और अभिवादन करके अपना परिचय देता हुआ कहने लगा
राजन् ! मै राजगृह नरेश अर्द्ध चक्री महाराज जरासधर का दूत हूँ।
१ समुद्रविजय के छोटे भाइया के नाम ये ह-अक्षोभ्य, स्तिमित, सागर, हिमवान, अचल, धरण, पूरण, अभिचन्द्र और वसुदेव । इस प्रकार
समुद्रविजय दश भाई थे और ये दशाह के नाम से प्रसिद्ध थे। २ जरासंध राजा वसु की वश परपरा मे उत्पन्न हुआ था।
शुक्तिमती नगरी के स्वामी वसु (प्रसिद्ध पर्वत-नारद विवाद का निर्णायक, हिंसक यज्ञो के पक्ष मे निर्णय देने के कारण नरक मे जाने वाला) की मृत्यु के पश्चात उमका पुत्र सुवसु अपने प्राण बचाकर नागपुर भाग गया या। (देखिए मधुकर मुनि जी कृत-राम-क्रया हिमक यज्ञो की उत्पत्ति, और विपष्टि० ७.२) । उसका पुत्र वृहद्रथ हुआ। बृहद्रथ नागपुर छोडकर राजगृह नगर में जा बसा। उसके पश्चात उसकी वश परम्परा मे अनेक राजा हुए । इसी वश परम्परा मे पुन वृहद्रथ नाम का राजा हुआ। इसका पुत्र हुआ जरासध । यह जरासघ प्रचट आज्ञा वाला, भरतक्षेत्र के तीन खडो का स्वामी और प्रतिवासुदेव था।
[देखिए त्रिपप्टि शलाका ८१२ गुजराती अनुवाद, पृष्ठ २२०]