Book Title: Jain Shrikrushna Katha
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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वसुदेव का निष्क्रमण
जरासंध ने सत्कारपूर्वक विदा होकर राजा समुद्रविजय और वसुदेव कुमार वापिम गौर्यपुर लोट आये ।
४.
शौर्यपुर मे वसुदेव कुमार स्वेच्छा पूर्वक घूमते । उनकी रूपराशि इतनी आकर्षक थी कि स्त्रियाँ उन्हें देखकर आकृष्ट हो जाती । वे घर के काम-काज और लोकमर्यादा को तिलांजलि देकर एकटक उन्हें ही देखने लगती । युवतियो और किशोरियों की तो बात ही क्या प्रौढा और वृद्धा भी कामविह्वल हो जाती । किन्तु वसुदेव कुमार इम सवसे निर्लिप्त अपनी धुन और मस्ती मे इधर-उधर घूमते और मनोरजन करते रहते ।
कुछ दिन तक तो प्रजाजनो ने महन किया किन जब स्थिति अधिक विगड गई तो एकान्त में आकर राजा समुद्रविजय से फरियाद की
- महाराज | आपके छोटे भाई वसुदेव कुमार के रूप के कारण नगर की स्त्रियो ने मर्यादा का त्याग कर दिया है । जो इन्हे एक वार देख लेती है वह इनका ही नाम रहने लगती है । तो जब ये वार वार दिखाई देते है तव क्या दशा होती होगी, आप स्वय विचार कर लीजिए ।
अनुज वमुदेव कुमार अतिशय रूपवान हैं यह तो राजा समुद्रविजय भी जानते थे किन्तु वात इतनी आगे बढ़ चुकी है, इसका उन्हे स्वप्न में भी अनुमान नही था । रूपवान होना तो अच्छा है, यह पुण्य का फल है किन्तु अतिशय रूप जो लोक मर्यादा के नाग का कारण
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