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इसमें भगवान आदिनाथ, शांतिनाथ, नेमनाथ, पार्श्वनाथ और महावीरके चरित्र सविस्तर लिखे गये हैं । शेष सभी संक्षेपमें हैं ।
यहाँ एक बातका खुलासा करना जरूरी जान पड़ता हैं । आजकल कुछ विधवाविवाहकी हिमायत करनेवाले शास्त्रोंके - माननीय आगम शास्त्रोंके - पाठों को समझे विना कहा करते हैं कि प्रभु श्री ऋषभदेवने सुनंदा के साथ पुनर्लग्न किया था । उनको मैं सस्नेह मगर जोर देकर कहता हूँ कि यह बात बिलकुल गलत है । शास्त्रोंका अभ्यास किये बगैर इस तरहकी व्यर्थ बातें करनेसे बहुत ही हानि होती है । अपनी क्षुद्र वृत्तियोंका खयाल न कर प्रभुतक पहुँचना सचमुच ही शोचनीय है । पुरुषोत्तम जगद्वंदनीय पुरुषके लिए ऐसी बात कहना वास्तवमें हास्यास्पद है | सत्य बात तो यह है कि
युगलियोंके समयमें शादी जैसी कोई प्रथा ही नहीं थी । श्रीऋषभदेव प्रभुका, इन्द्रने आकर व्याह करवाया था तभीसे शादी की रीति चली है। जो आज तक चली जा रही है ।
यह भी ध्यान देनेकी बात है कि जब श्रीऋषभदेव प्रभु बालक थे तभी, एक युगलियाका जन्म हुआ था । युगलियाके मातापिता उनको – बालक और बालिकाको - किसी ताडवृक्षके नीचे बिठाकर क्रीडा करनेको दूर जाते हैं इतनेहीमें हवा चलती है । ताड़फल टूटता है, बालकके । सिरपर आकर गिरता है । बालक वहीं मर जाता है । बालिका अकेली रह जाती है । मातापिता बालिकाका पालन करते हैं । कुछ दिन बाद उसके मातापिता भी मर जाते हैं । अत्यंत रूपवती बालिका अकेली रह जाती है । कुछ युग लिये इसको
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