Book Title: Jain Parampara ka Itihas
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 14
________________ जैन परम्परा का इतिहास सौम्य आदि सहज गुणो में परिवर्तन ला दिया । अपराधी मनोवृति का बीज अंकुरित होने लगा। ___अपराध और अव्यवस्था ने उन्हे एक नई व्यवस्था के निर्माण की प्रेरणा दी। उसके फलस्वरूप 'कुल' व्यवस्था का विकाश हुआ। लोग 'कुल' के रूप में संगठित होकर रहने लगे । उन कुलो का मुखिया होता, वह कुलकर कहलाता। उसे दण्ड देने का अधिकार होता। वह सब कुलो की व्यवस्था करता, उनकी सुविधाओ का ध्यान रखता और लूट-खसोट पर नियन्त्रण रखता-यह शासन-तन्त्र का ही आदि रूप था । सात या चौदह कुलकर आए । उनके शासन-काल मे तीन नीतियो का प्रवर्तन हुआ । सबसे पहले "हाकार" नीति का प्रयोग हुआ । आगे चलकर वह असफल हो गई तब "माकार" नीति का प्रयोग चला । उसके असफल होने पर "धिक्कार" नीति चली। उस युग के मनुष्य अति-मात्र ऋजु, मर्यादा-प्रिय और स्वयं शासित थे। खेद-प्रदर्शन, निषेध और तिरस्कार-ये मृत्यु-दण्ड से अधिक होते । __ मनुष्य प्रकृति से पूरा भला ही नही होता और पूरा बुरा ही नही होता । उसमे भलाई और बुराई दोनो के बीज होते है। परिस्थिति का योग पा वे अकुरित हो उठते है। देश, काल, पुरुषार्थ, कर्म और नियति की सह-स्थिति का नाम है परिस्थिति । वह व्यक्ति की स्वभावगत वृत्तियो की उत्तेजना का हेतु बनती है । उससे प्रभावित व्यक्ति बुरा या भला बन जाता है। जीवन की आवश्यकताए कम थी, उसके निर्वाह के साधन सुलभ थे। उस समय मनुष्य को सग्रह करने और दूसरो द्वारा अधिकृत वस्तु को हडपने की बात नहीं सूझी । इनके बीज उसमें थे, पर उन्हें अकुरित होने का अवसर नही मिला। ___ ज्यो ही जीवन की थोड़ी आवश्यकताए बढी, उसके निर्वाह के साधन कुछ दुर्लभ हुए कि लोगो मे सग्रह और अपहरण की भावना उभर आई। जब तक लोग स्वय शासित थ, तब तक बाहर का शासन नही था। ज्यो-ज्यो स्वगतशासन टूटता गया, त्यो-त्यो बाहरी गासन बढ़ता गया-यह कार्य-कारणवाद और एक के चले जाने पर दूसरे के विकसित होने की कहानी है ।

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