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जैन परम्परा का इतिहास नही जानता था । न कोई वाहन था और न कोई यात्री । गांव वसे नही थे । न कोई स्वामी था और न कोई सेवक । गासक और शासित भी नही थे । न कोई गोपक या और न कोई शोपित । पति-पत्नी या जन्य-जनक के सिवा सम्बन्ध जैसी कोई वस्तु ही नही थी।
धर्म और उसके प्रचारक भी नहीं थे, उस समय के लोग सहज धर्म के अधिकारी और गांत-स्वभाव वाले थे। चुगली, निन्दा, आरोप जैसे मनोभाव जन्मे ही नही थे । हीनता और उत्कर्ष की भावनाए भी उत्पन्न नही हुई थी। लड़ने-झगड़ने की मानसिक नन्थियाँ भी नही बनी थी । वे शस्त्र और शास्त्र दोनो से अनजान थे। ___ अब्रह्मचर्य सीमित था, मारकाट और हत्या नही होती थी । न संग्रह था, न चोरी और न असत्य । वे सदा सहज आनन्द और शान्ति मे लीन रहते थे।
काल चक्र का पहला भाग ( अर) वीता । दूसरा और तीसरा भी लगभग बीत गया। __ सहज समृद्धि का क्रमिक ह्रास होने लगा । भूमि का रस चीनी से मनन्तगुण मीठा था, वह कम होने लगा । उसके वर्ण, गन्ध और स्पर्श की श्रेष्ठता भी कम हुई।
युगल मनुप्यो के गरीर का परिमाण भी घटता गया । तीन, दो और एक दिन के बाद भोजन करने की परम्परा भी टूटने लगी । कल्प-वृक्षो की शक्ति भी क्षीण हो चली।
यह योगलिक व्यवस्था के अन्तिम दिनो की कहानी है। / कुलकर-व्यवस्था । असख्य वो के वाद नए युग का मारम्भ हुआ। योगलिक व्यवस्था धीरेधीरे टूटने लगी। दूसरी कोई व्यवस्था अभी भन्म नही पाई। सक्रान्ति-काल चल रहा था । एक ओर आवश्यकता-पूर्ति के साधन कम हुए तो दूसरी ओर जन-सख्या और जीवन की आवश्यकताए कुछ वढी । इस स्थिति मे आपसी सवर्प और लूट-खसोट होने लगी । परिस्थिति की विवशता ने क्षमा, शान्ति,