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सामूहिक परिवर्तन
-- विश्व के कई भागो मे काल को अपेक्षा से जो सामूहिक परिवर्तन होता है, उसे 'क्रम-हासवाद' या 'क्रम-विकासवाद' कहा जाता है। काल के परिवर्तन से कभी उन्नति और-कभी अवनति हुआ करती है। उस काल के मुख्यतया दो भाग होते है-अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी।
अवसर्पिणी मे वर्ण, गन्य, रस, स्पर्श, संहनन, सस्थान, आयुष्य, शरीर, मुख आदि पदार्थों की क्रमशः अवनति होती है ।
उत्सर्पिणी में उक्त पदार्थो की क्रमशः उन्नति होती है। पर वह अवनति और उन्नति समूहापेक्षा से है, व्यक्ति की अपेक्षा से नहीं।
अवसर्पिणी की चरम सीमा ही उत्सपिंगो का प्रारम्भ है और उत्सर्पिणी का अन्त अवसर्पिणी का जन्म है । क्रमश. यह काल-चक्र चलता रहता है।
प्रत्येक अवसर्पिणी और उत्सर्पिणी के छह-छह भाग होते है :(१) एकान्त-सुपमा (२) सुपमा (३) सुपम-दुःपमा (४) दुपम-सुपमा (५) दुपमा (६) दुपम-दुपमा
ये छह अवसर्पिगी के विभाग है। उत्सर्पिणी के छह विभाग इम व्यतिक्रम से होते है :
(१) दुपम-दुःपमा (२) दुपमा (३) दुपम-सुपमा (४) मुपम-दुःपमा (५) मुपमा (६) एकान्त-मुपमा