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जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा
२-प्रमाण-यथार्थ ज्ञान या व्यवसाय । [भगवती के आधार पर प्रमाण-व्यवस्था २८]
प्रमाण
प्रत्यक्ष अनुमान उपमा आगम
' (शेष अनुयोग द्वारवत्) [स्थानाङ्ग सूत्र के आधार पर प्रमाण-व्यवस्था ]
व्यवसाय
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प्रत्यक्ष प्रात्ययिक आनुगमिक अथवा-(द्वितीय प्रकार ३०)
शान दो प्रकार का होता है-१-प्रत्यक्ष २-परोक्ष प्रत्यक्ष के दो भेद...१- केवल ज्ञान २-नो केवल-ज्ञान केवल-शान के दो भेद...१---भवस्थ केवल ज्ञान २-सिद्ध केवल-शान भवस्थ केवल-बान के दो मेद...१-संयोगि-भवस्थ केवल ज्ञान
। २-अयोगि-भवस्थ केवल-शान संयोगि-भवस्थ केवल-ज्ञान के दो भेद': (१) प्रथम समय संयोगि-भवस्थ केवल-ज्ञान
(२) अप्रथम समय संयोगि-भवस्थ-केवल-ज्ञान , अथवा-[१] चरम समय संयोगि-भवस्थ केवल-शान
[२] अचरम समय संयोगि-भवस्थ केवल शान अयोगि-भवस्थ केवल जान के दो मेद (१) प्रथम समय अयोगि-भवस्थ
केवल-शान (२) अप्रथम समय अयोगि
. भवस्थ केवल ज्ञान। । अथवा-(१) चरम समय अयोगि-भवस्थ
केवल-ज्ञात