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जैन दर्शन में प्रमाण मीमासा १५५ (५) धर्म-धर्मि-सम्बन्ध की विवक्षा...दूध का मिठास, रूप आदि। .
इनके वर्गीकरण से दो दृष्टियां बनती हैं:(१) द्रव्य प्रधान या अभेद-प्रधान । (२) पर्याय प्रधान या भेद-प्रधान ।
त्रय का रहस्य यह है कि हम दूसरे व्यक्ति के विचारों को उसी के अभिप्रायानुकूल समझने का यत्न करे। नय का स्वरूप
कथनीय वस्तु दो हैं:(१) पदार्थ-द्रव्य। (२) पदार्थ की अवस्थाएं -पर्याय । अभिप्राय व्यक्त करने के साधन दो है :(१) अर्थ (२) शब्द । अर्थ के प्रकार दो हैं:(१) सामान्य (२) विशेष । शब्द की प्रवृत्ति के हेतु दो हैं :(१) रूढि। (२) व्युत्पत्ति व्युत्पत्ति प्रयोग के कारण दो हैं:(१) सामान्य निमित्त। २) तत्कालमावी निमित्त ।
नेगम-सामान्य-विशेष के संयुक्त रूप का निरूपण जैसम नय है । (२) संग्रह- केवल सामान्य का निरूपण संग्रह नय है। (३) व्यवहार केवल विशेष का निरूपण व्यवहार नय है। (1) जुसूत्र-चणवतों विशेष का निरुपण जुसूत्र नय है। (५)शब्द-रूढ़ि से होने वाली शब्द की प्रवृत्ति का अभिप्राय-शब्द
नय है।