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जैन दर्शन में प्रमाण मीमासा
वाले व्यक्ति का शरीर अपेक्षित है और तद्-व्यतिरिक्त में अध्यापक का शरीर।
(१) ज्ञाता . अनुपयुक्त...आगम से द्रव्य-निक्षेप । (२) ज्ञाता का मृतक शरीर.. नो-पागम से मृत-ज्ञ शरीर-द्रव्य निक्षेप ।
(३) भावी पर्याय का उपादान...नो आगम से भावी-ज-शरीर-द्रव्यनिक्षेप ।
(४) पदार्थ से सम्बन्धित वस्तु में पदार्थ का व्यवहार नो-आगम से तद्व्यतिरिक्त-व्य-निक्षेप । (जैसे वस्त्र के कर्ता व वस्त्र-निर्माण की सामग्री को वस्त्र कहना)
आगम-द्रव्य-निक्षेप में उपयोगरूप आगम-ज्ञान नही होता, लब्धि रूप (शक्ति रूप) होता है। नो-आगम द्रव्यो में दोनो प्रकार का आगम-जान नहीं होता, 'सिर्फ आगम-ज्ञान का कारणभूत शरीर होता है। नो-आगम तद् व्यतिरिक्त में आगम का सर्वथा अभाव होता है। यह क्रिया की अपेक्षा द्रव्य है। इसके तीन रूप बनते हैं :
लौकिक, कुप्रावचनिक, लोकोत्तर । (१) लोक मान्यतानुसार 'दूब' मगल है । (२) कुप्रावचनिक मान्यतानुसार 'विनायक' मंगल है । (३) लोकोत्तर मान्यतानुसार 'ज्ञान, दर्शन, चारित्र रूप धर्म' मंगल है।
१-ज्ञाता उपयुक्त (अध्यापक शब्द के अर्थ में उपयुक्त आगम से माव"निक्षेप)।
२-जाता क्रिया प्रवृत्त (अध्यापन क्रिया में प्रवृत्त) नो-पागम से भावनिक्षेप।
यहाँ 'नो' शब्द मिश्रवाची है, क्रिया के एक देश में ज्ञान है। इसके भी तीन रूप बनते हैं :
(१) लौकिक (२) कुप्रावनिक (३) लोकोचर नो-आगम तद-व्यतिरिक्त द्रव्य के लौकिक आदि तीन भेद और