Book Title: Jain Darshan me Praman Mimansa
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Mannalal Surana Memorial Trust Kolkatta

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Page 218
________________ २१०] जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा 'दिसा मोहेण' कह्यो आवसग मम, ते दिसणो पाम्यो व्यामोह । ते पिण ज्ञानावरणी रा उदा थकी, ते हिरदै विचारी जोय ॥ ज्ञानावरणी रा उदा थकी, जान भूले सांसो पर जाय । दसण मोहणी रा उदा थकी, पदार्थ ऊधो सरधाय ॥ -इ० चौ० १०१३३,३६,३७ । ४६-न्याया० वा. वृ० पृ० १७० ४७-मिथ्यावं त्रिषु बोधेषु, दृष्टि मोहोदयाद् भवेत् ॥ यथा सरजसालाबूफलस्य कटकत्वतः । क्षितस्य पयसो दृष्टः, कटुमाव स्तथाविधः ॥ तथात्मनोपि मिथ्यात्वपरिणामे सतीष्यते । मत्यादिसंविदां ताहड्, मिथ्यात्व कस्यचित् सदा ॥ -तत्वा० श्लो. पृ० २५६ । ४८ खत्रोवसमिश्रा आभिणी बोहिय णाणलद्धी जाव खोवसमिश्रामणपज्जव णाणलद्धी,। खोवसमिश्रा मइ अण्णाणलद्धी, खोवसमिया सुय अण्णाणलद्धी खोवसमिया विमग अण्णाणलद्धी...|-अनु० १२६ ४E-सदसद् विसेसाणानो भवहेतु जदिच्छिनोव लमानो। णाणफलाभावाश्रो, मिच्छादिहिस्स अण्णाण ॥ -वि० भा० ११५ ५०-भग० २४१२१ ५१-से किं त जीवोदय निष्फन्ने मिच्छादिट्टी-अनु० १२६ ५२-(क) से कि त खोवसमनि'फन्ने... मिच्छादसण लद्धी। -अनु० १२६ । (ख) मिथ्या दृष्टि कहाय रे, भाव क्षयोपशम उदय वली। ए विहुँ' भावे थाय रे, देखो अनुयोग द्वार मैं ॥ क्षयोपशम निपन्न माहिरे, दाखी मिश्या दृष्टि ने। मिथ्यात्वी री ताहि रे, भली भली श्रद्धा तिका ।। मिथ्यात्व आस्तव ताम रे, उदय भाव मिथ्या दृष्टि ॥ -भग जोड़ १२-५

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