Book Title: Jain Darshan me Praman Mimansa
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Mannalal Surana Memorial Trust Kolkatta

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Page 223
________________ गदर्शन में प्रमाण मीमांसा [२१५ १६१ १३- .. १८-(Effift TaL गपक्ष पनपेक्षश्न, न्योल्यादिवद् वर्णादिवस - क० मा ४१५ (ग) मग्नुनः काना मावा प्रतिनित पाकव्याल्या, केचिन्नइत्यत्र समएम नरगा। -रने । - पपग, कागद गिनीति पय हुन्छा। दिमिणं वेचित्त, मगर ग पाग..~मा० ० ३. 86 -भग ५ २१-उस ६० २४-भग २५- ७६१ १६-भग १७३। २७-मनि २८-स. नि. २६-भग १८१०। ३०-(क) भग ८२ । (स) स्था० १११७५४ । ३१ दशवै० ७८EI ३२-(क) न चावधारणमिधिः सिद्धान्तेनानुमत इति वक्तव्य, तत्र-तत्र प्रदेशेऽनेकशोऽत्रधारणविधिदर्शनात्, तथाहि-"किमियं भन्ते ! कालोत्ति पवुच्चइ ? गोयमा ! जीवा चेव अजीवा चेवत्ति स्थानाने प्युक्तम्-"जदयि दुप्पड़ोयार, तंजहा च णं लोए तं सव्व-जीवा चेव अजीवा चेव"। तथा “जह चेवर मोक्खफला, आणा आराहिया जिर्णिदाण" इत्यादि वा त्ववधारणी भापा प्रवचने निषिध्यते सा कचित् तथा रूप वस्तुतत्त्वनिर्णया

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