Book Title: Jain Darshan me Praman Mimansa
Author(s): Chhaganlal Shastri
Publisher: Mannalal Surana Memorial Trust Kolkatta

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Page 215
________________ जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा विषयाकार एवास्य, प्रमाण तेन मीयते ॥" - प्र० समु० पृ०० २४ प्रमाणं तु सारुण्य, योग्यता वा - त० श्लो० १३-४४ २ त्या० भ० १११।३ ३ –न्याय० १ ४- मी० श्लो० वा० १८४ - १८७ ५- स्या० मं० १२ ६ स्या० मं० १५ - ७ - देखिए बसुबंधुकृत 'विशतिका ८- स्या० मं० १६ ε- लघी ० ६० । १०- प० मु० मे० ११- प्र० न० ११२श १२ - प्रमा० मी० १|३| १३ - भिक्षु न्या० १|११| १४ - सर्व ज्ञान स्वापेक्षया प्रमाणमेव, न प्रमाणाभासम् । बहिरर्थापेक्षया तु किंचित् प्रमाण, किंचित् प्रमाणाभासम् ॥ १५ -- प्रमेय नान्यथा गृह्णातीति यथार्थत्वमस्य १६ -- तत्त्वा० श्लो० १७५/ [ २०७ १७ सन्म० पृ० ६१४ | १८ -- तत्त्वा० श्लो० पृ० १७५ । १६- ( क ) प्र० न० र० १-२ | ( ख ) प्रमा० मी० । -प्र० न० १|१६ - भिक्षु० न्या० १-११| 1 २०- प्र० न० ११२० । २१ - भिक्षु न्या० ११६ ॥ २२ -- अयञ्च विभागः विषयापेक्षया, स्वरूपे तु सर्वत्र स्वत एव प्रामाण्य निश्चयः - शा० वि० २३- भिक्षु न्या० १११३ ॥

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