________________
जैन दर्शन में प्रमाण मीमांसा
१२७
नहीं। फिर भी मानसिक मुकाव के कारण कोई उसे सर्वथा त्रुटिपूर्ण कहता है, कोई सोलह आना सही मानता है। 4/ ऊपर की कुछ पंक्तियां सूत्र-रूप मे है। इनसे हमारी दृष्टि विशाल बनती है। स्यादवादकी मर्यादा समझने में भी सहारा मिलता है । वस्तु का स्थूल रूप देख हम उसे सही-सही समझ ले, यह बात नहीं। उसके लिए बड़ी सावधानी बरतनी पड़ती है। ऊपर के सूत्र सावधानी के सूत्र हैं। वस्तु को समझते समय सावधानी में कमी रहे तो दृष्टि मिथ्या बन जाती है और आगे चल वह हिंसा का रूप ले लेती है और यदि सावधानी बरती जाए-आस-पास के सब पहलुओं पर ठीक ठीक दृष्टि डाली जाए तो वस्तु का असली रूम समझ में आ जाता है।