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जैन दर्शन में प्रमाण मौमांसा
न कर सके, इसलिए यह भी सत्य की बाधक है। आवेश, क्रोध, अभिमान छल, लोम-लालच की उस दशा में व्यक्ति ठीक-ठीक नहीं सोच पाता, इसलिए ऐसी स्थितियों में अयथार्थ बातें बढ़ाचढ़ाकर या तोडमोड़कर कही जाती हैं ५११ ईक्षण या दर्शन सम्बन्धी भूले
वस्तु अधिक दूर होती है या अधिक निकट, मन चंचल होता है, वस्तु अति सूक्ष्म होती है अथवा किसी दूसरी चीज से व्यवहत होती है, दो वस्तुए मिली हुई होती हैं, क्षेत्र की विषमता होती है, कुहासा होता है, काल की विषमता, स्थिति की विषमता होती है, तव दर्शन का प्रमाद होता है-देखने की भूलें होती हैं ५२॥ आकने की भूले
वस्तु का जो स्वरूप है, जो क्षेत्र है, जो काल और भाव-पर्याये हैं, उन्हे छोड़कर कोरी वस्तु को समझने की चेष्टा होती है, तब वस्तु का स्वरूप आकने मे भूले होती है। कार्य-कारण सम्बन्धी मूळे ___ जो पहले होता है, वही कारण नहीं होता। कारण वह होता है, जिसके / बिना कार्य पैदा न हो सके। पहले होने मात्र से कारण मान लिया जाए अथवा कारण-सामग्री के एकांश को कारण मान लिया जाए अथवा एक वात को अन्य सब बातो का कारण मान लिया जाए-वह कार्य कारण सम्बन्धी भूले होती है। प्रमाण सम्बन्धी मुले
जितने प्रमाणाभास हैं, वे सव प्रमाण का प्रमाद होने से बनते हैं । जैसेप्रत्यक्ष का प्रमाद, परोक्ष का प्रमाद, स्मृति-प्रमाद, प्रत्यभिज्ञा-प्रमाद, तर्कप्रमाद, अनुमान-प्रमाद, आगम-प्रमाद, व्याति-प्रमाद, हेतु-प्रमाद, लक्षण-प्रमाद । मानसिक अकाव सम्बन्धी प्रमाद
कम-विकास का सिद्धान्त गलत ही है यह नहीं, यथार्थ ही है, यह भी