Book Title: Gyanand Ratnakar Part 02
Author(s): Nathuram Munshi
Publisher: Khemraj Krishnadas

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Page 12
________________ % 34 ज्ञानानन्द रत्नाकर। तृतिय णमों आइरियाणं पद सप्ताक्षर का भेदं सुनो ॥ जिसके सुनते दूर होवे भव २ का खेद सुनो। आचार्यन को नमस्कार हो यह जन की उम्मेद सुनो। करों निर्जरा बंद कर के आश्रव का छेद सुनो। शेर-मुन्यों में जो शिरोमाण हैं यती छत्तीस गुणधारी॥ करें निज शिष्य औरों को कहें चारित्र विधि सारी॥ प्रायश्चितलेय मुनि जिनसगुरूनिजजानिहितकारी॥ हरें बसु दुष्ट कर्मों को वरें भव त्यांगि शिव नारी॥ ऐसे मुनिवर शूर धरें तप भूरि कर्मों को चूरि करें। सुर नर के सुख भोगि बसु अरिहरिके भवसिंधुतरें३॥ तूर्य णमों उवझायाणं पद सप्ताक्षर का सार कहूं। उपाध्याय के तई हो नमस्कार हर बार कहूं ॥ आप पढें औरों को पढ़ावें अध्यातम विस्तार कहूं ॥ ऐसे मुनिवर कहावें उपाध्याय जगतार कहूं ॥ . शेर-पंच अरु बीस गुण धारी ऋषी उवझाय सो जानो । , महाभट मोहको क्षणमें परिग्रह त्यागकेहानो ॥ सप्त भय अष्ट मद तज कर करें तप घोर शूरानो॥ सहे बाइस परीषह को अचल परणाम गिरि मानो। शुक्फ ध्यान घर कर्म नाश कर ऐसे मुनि शिव नारि वरें। सुर नर के सुख भोगि बसु अरि हरिके भव सिंधु तरें॥ णमो लोयें सब्ब साहूणं पंचम पद के ये नव वर्ण ॥ .नमस्कार हो लोक के सब साधुन के बंदों चर्ण ॥

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